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________________ १४९ अध्ययन ३ उद्देशक १ . ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा णो महई विहारभूमी, णो महई वियारभूमी णो सुलभे पीढ-फलग-सिजासंथारए, णो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे जत्थ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य अच्चाइण्णा वित्ती, णो पण्णस्स णिक्खमण जाव चिंताए सेवं णच्चा तहप्पगारं गाम वा णगरं वा जाव रायहाणिं वा णो वासावासं उवल्लिइज्जा॥ कठिन शब्दार्थ - अच्चाइण्णावित्ती - अत्यंत-आकीर्ण वृत्ति - बहुत भीड़भाड़। भावार्थ - जिस ग्राम नगर यावत् राजधानी में साधु-साध्वी के योग्य विशाल स्वाध्याय भूमि और विशाल स्थंडिल भूमि न हो, आवश्यकतानुसार पाट, पाटला, शय्या, संस्तारक की सुलभता न हो अथवा प्रासुक और एषणीय आहार-पानी सुलभता से नहीं मिलता हो, जहाँ अन्यतीर्थी शाक्यादि भिक्षु बड़ी संख्या में आए हुए हों, उनकी भीड़-भाड हो अथवा आने वाले हों जिससे साधु साध्वी के गमनागमन, स्वाध्यायादि में बाधा आती हो, ऐसे ग्रामादि में साधु-साध्वी वर्षाकाल बिताने के लिए नहीं रहे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा गामं वा जाव रायहाणिं वा, इमंसि खलु गामंसि वा रायहाणिंसि वा महई विहार भूमी, महई वियार भूमी, सुलभे जत्थ पीढ फलग-सेजा-संथारए, सुलभे फासुए उंछे अहेसणिजे, णो जत्थ बहवे. समण जाव उवागया, उवागमिस्संति वा अप्पाईण्णा वित्ती जाव रायहाणिं वा तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिइज्जा॥११२॥ ___भावार्थ - जिस ग्राम नगर यावत् राजधानी में स्वाध्याय योग्य विशाल भूमि हो, मलमूत्रादि का त्याग करने के लिए विशाल स्थंडिल भूमि हो, पीठ-फलक शय्या संस्तारकादि की प्राप्ति सुलभ हो, प्रासुक और एषणीय भिक्षा सुलभता से मिल सकती हो, जहाँ अन्यतीर्थी श्रमण भिक्षु आदि बहुत नहीं आये हुए हों और न आने वाले हों जहाँ अधिक भीड़ भाड़ न हो, आना जाना सुगम हो, ऐसे ग्राम या नगरादि में साधु-साध्वी वर्षाकाल व्यतीत करे। . विवेचन - साधु साध्वी को उसी स्थान पर वर्षावास करना चाहिये जहाँ निम्न बातों की अनुकूलता हो-१. स्वाध्याय एवं चिंतन मनन के लिए उचित स्थान २. शहर या गांव के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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