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अध्ययन २ उद्देशक ३
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भवेजा, णिरुवसग्गा वेगया सेजा भवेजा, तहप्पगाराहिं सेजाहिं संविजमाणाहिं पग्गहियतरागं विहारं विहरिज्जा। णो किंचि वि गिलाइज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - वा - अथवा, एगया - किसी दिन या कभी, भवेजा - मिले, ससरक्खा - रज युक्त, अप्पससरक्खा - रज से रहित, सदंसमसगा - डांस मच्छर युक्त, अप्पदंसमसगा - डांस मच्छर रहित, सपरिसाडा - गिरी हुई, जीर्णता से युक्त, अपरिसाडानवीन-दृढ़, सउवसग्गा - उपसर्गादि युक्त, णिरुवसग्गा - उपसर्ग रहित, संविजमाणाहिं - विद्यमान होने पर, पग्गहियतरागं - ग्रहण किये हुए, गिलाइज्जा - खिन्न या उदास हो। .
भावार्थ - साधु-साध्वी को किसी समय सम या विषय शय्या मिले, हवादार या हवा रहित स्थान मिले, धूल युक्त या धूल रहित अथवा डांस मच्छर युक्त या डोस मच्छर रहित स्थान मिले, कभी जीर्ण शीर्ण मिले, कभी सुदृढ़ शय्या मिले या उपसर्ग युक्त या उपसर्ग रहित शय्या मिले, इस प्रकार की विचित्र शय्याओं के मिलने पर साधु अथवा साध्वी उसे समभाव से ग्रहण करे। प्रतिकूल शय्या के मिलने पर भी किंचित् मात्र मानसिक दुःख (ग्लानि) एवं खेद का अनुभव न करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु-साध्वी को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों अवस्थाओं में समभाव रखना चाहिए और राग द्वेष से ऊपर उठ कर विचरना चाहिये, यही सच्ची साधुता है। . ___एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वदे॒हिं सहिए सया जइज्जासि त्ति बेमि॥११०॥
भावार्थ - यही साधु-साध्वी का समग्र आचार है। जिसमें ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त होकर सदा यतना पूर्वक प्रवृत्ति करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
॥दूसरे अध्ययन का तीसरा उद्देशक समाप्त॥ . . . ॐ शय्यैषणा नामक दूसरा अध्ययन समाप्त ®
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