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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध। orrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.........................
'उज्जुया' के स्थान पर पाठान्तर हैं - 'उज्जुकडा, उज्जुयकड़ा, उजुअडा' आदि।
उत्थानिका - साधु साध्वी अपने साधर्मिक साधु साध्वियों के साथ ही ठहरे परन्तु यदि कदाचित् स्वतंत्र मकान न मिले ऐसी परिस्थिति वश साधु साध्वी को अन्य मतावलम्बी चरक, परिव्राजक आदि भिक्षुओं के साथ ठहरना पडे तो किस विधि से ठहरना चाहिए। इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार फरमाते हैं -
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिजा-खुड्डियाओ खुड्डदुवारियाओ णिययाओ संणिरुद्धाओ भवंति-तहप्पगारे उवस्सए राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पुरा हत्थेण वा पच्छा पाएण वा तओ संजयामेव णिक्खमिज्ज वा पविसिज वा। केवली बूया-आयाणमेयं। जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा छत्तए वा मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, णालिया वा, चेले वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्मछेयणए वा, दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले भिक्खू य राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पयलिज वा पवडिज वा, से तत्थ पयलेमाणे वा पवडेमाणे वा हत्थं वा पायं वा जाव इंदियजायं वा लूसिज्ज वा पाणाणि जाव सत्ताणि अभिहणिज वा जाव ववरोविज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा जाव जं तहप्पगारे उवस्सए पुरा हत्थेणं पच्छा पाएणं, तओ संजयामेव णिक्खमिज वा पविसिज वा॥८८॥
कठिन शब्दार्थ - णिययाओ - नीचा, संणिरुद्धाओ - रुंधा हुआ हो, खाली न हो, छत्लए - छत्र, मत्तए - पात्र, दंडए - दंड, लट्ठिया - लाठी, भिसिया - आसन विशेष, णालिया - नालिका-लाठी विशेष-जो लकड़ी अपने शरीर से चार अंगुल लम्बी हो, चेले - वस्त्र, चिलिमिली - यवनिका (पर्दा)-मच्छरदानी, चम्मए - मृग छाल, चम्मकोसए - चर्म-कोश-चर्म की थैली, चम्मछेयणए - चर्म छेदनक-चर्म (चमड़ा) काटने के औजार, दुब्बद्धे - जो अच्छी तरह से बांधा हुआ न हो, दुण्णिक्खित्ते - जो अच्छी तरह से रखे न हो, अणिकंपे - अनिष्कंप, चलाचले - चलाचल (अस्थिर)।
भावार्थ - साधु या साध्वी जिस उपाश्रय के विषय में ऐसा जाने कि-यह छोटा है, छोटे
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