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+ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्री आचारांग सूत्र
द्वितीय श्रुतस्कन्ध पिण्डैषणा नामक प्रथम अध्ययन
प्रथम उद्देशक - द्वादशांगी में आचारांग, सूत्र का प्रथम स्थान है। इस के दो. श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपआचार और वीर्याचार, इन्, पांच आचारों का वर्णन सूत्र शैली में किया गया है। अतः प्रथम श्रुतस्कंध भाव, भाषा एवं विषय की दृष्टि से गहन एवं गंभीर है जबकि द्वितीय श्रुतस्कंध में प्रमुख रूप से चारित्राचार (साध्वाचार) का उपदेश शैली में वर्णन किया गया है। अतः भाव, भाषा एवं विषय की दृष्टि से. यह श्रुतस्कंध सरल एवं सुगम है। प्रथम श्रुतस्कंध में वर्णित चारित्राचार का इस द्वितीय श्रुतस्कंध में विस्तृत वर्णन किया गया है। अतः चारित्र की सम्यक् आराधना करने के लिये दूसरे श्रुतस्कंध का अध्ययन करना परम आवश्यक है।
आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में १६ अध्ययन हैं और इनके ३४ उद्देशक हैं। पिण्डैषणा नामक प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में इस प्रकार का वर्णन है
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवाय पडियाए अणुपविढे समाणे से जं पुण जाणेजा-असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, पाणेहिं वा, पणएहिं वा, बीएहिं वा, हरिएहिं वा, संसत्तं, उम्मिस्सं, सीओदएण वा, उसित्तं रयसा वा, परिघासियं तहप्पगारं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, परहत्यसि वा, परपायंसि वा, अफासुयं अणेसणिजं ति मण्णमाणे लाभे वि संते णो पडिग्गाहेज्जा॥
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