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________________ १२६ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrre भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं वटुंति अयमाउसो! सावज किरिया यावि भवइ॥८४॥ ' कठिन शब्दार्थ - सावज किरिया - सावध क्रिया । भावार्थ - इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में रहने वाले कितने ही धर्म श्रद्धालु जीव होते हैं जो श्रद्धा, प्रतीति, रुचि करने से बहुत से श्रमणादि को उद्देश्य करके उनके लिए मकान बनवाते हैं जो मुनिराज तथाप्रकार के गृहों में निवास करते हैं तो हे आयुष्मन् ! उनके लिए यह सावध क्रिया होती है। यह सावद्य क्रिया नाम की वसति (शय्या) है। विवेचन - यहाँ मूल पाठ में 'बहवे समणजाए' शब्द दिया है। उसका आशय "पाँच प्रकार के श्रमणों (निर्ग्रन्थ, शाक्य, तामस, आजीविक और गैरिक) के उद्देश्य से" ऐसा अर्थ . किया जाता है। ८. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा-गाहावई वा जाव कम्मकरी वा तेसिं च णं आयारगोयरे णो सुणिसंते भवइ, जाव तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेइयाइं भवंति तं जहा-आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा, महया पुढविकाय समारंभेणं एवं महया आउ-तेउ-वाऊ-वणस्सइ-तसकाय समारंभेणं महया संरंभेणं, महया समारंभेणं, महया आरंभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहिं तंजहा-छायणओ लेवणओ संथारदुवार-पिहणओ सीओदए वा परिवियपुव्वे भवइ अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवइ, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं वटुंति दुपक्खं ते कम्मं सेवंति अयमाउसो! महासावज्ज किरिया यावि भवइ॥८५॥ कठिन शब्दार्थ - महया - महान्,. समारंभेणं - समारंभ से, पावकम्मकिच्चेहिं - पापकर्म का आचरण करके, छायणओ - आच्छादित करके, लेवणओ - लीप करके, संथारदुवार पिहणओ - बैठक या द्वार बंद करके, परिठ्ठविय - छिड़काव करके, दुपक्खं - द्विपक्ष । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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