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दूसरा अध्ययन - द्वितीय उद्देशक - अरति त्याग @@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@88888888
भावार्थ - तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा से विपरीत आचरण करने वाले मोह से आवृत्त कितनेक मंद-अज्ञानी जीव परीषह उपसर्गों के आने पर संयम से भ्रष्ट हो जाते हैं।
(७८) "अपरिग्गहा भविस्सामो" समुट्ठाए लद्धे कामे अभिगाहइ, अणाणाए मुणिणो, पडिलेहंति, एत्थ मोहे पुणो-पुणो सण्णा, णो हव्वाए णो पाराए।
• कठिन शब्दार्थ - अपरिग्गहा - अपरिग्रही - परिग्रह से रहित, लद्धे - प्राप्त होने पर, अभिगाहइ - सेवन करते हैं, पडिलेहंति - देखने-ताकने लगते हैं, प्रवृत्त होते हैं, सण्णा - आसक्त होकर, णो हव्वाए - न इस पार के, णो पाराए - न उस पार के।
भावार्थ - कुछ व्यक्ति “हम अपरिग्रही बनेंगे" ऐसा संकल्प करके दीक्षित होते हैं किंतु कामभोगों के प्राप्त होने पर वे उन्हें भोगने लग जाते हैं। वे वेषधारी तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा के विपरीत विषयभोगों की प्राप्ति के उपायों में प्रवृत्त होते हैं। इस प्रकार वे मोह में बारबार आसक्त हो कर न तो इधर के रहते हैं और न उघर के अर्थात् न तो गृहस्थ रहते हैं और न . साधु ही। वे उभय जीवन से भ्रष्ट हो जाते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अरति प्राप्त साधक की वयनीय मनोदशा का यथार्थ वर्णन किया गया है। हिताहित के विवेक से रहित कितनेक अज्ञानी जीव गृहस्थाश्रम छोड़ कर प्रव्रजित तो हो जाते हैं किंत विषयभोगों के सामने आने पर वे उनमें फंस जाते हैं। वे न तो इधर के रहते हैं और न उधर के अर्थात् वे न तो गृहस्थ ही कहे जा सकते हैं और न साधु ही कहे जा सकते हैं। जैसे - -
. कोई प्यासा हाथी पानी पीने के लिये तालाब में गया। वह पानी तक पहुंचा नहीं और बीच में ही कीचड़ में फंस गया। वह कीचड़ से वापिस निकलने का प्रयत्न करने लगा परंतु जैसे जैसे वह निकलने का प्रयत्न करने लगा वैसे वैसे वह कीचड़ में अधिक फंसता गया। आखिर वहां उसकी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार कोई साधक मोहनीय कर्म के उदय से मोह की प्यास बुझाने के लिये विषयभोग रूपी जलाशय में गया। वह आसक्ति के कीचड़ में फंस गया। उसे भोगों की प्राप्ति हुई नहीं और उसके संयमी जीवन की मृत्यु हो गई। इस प्रकार वह कुल मर्यादा आदि की लज्जा या परवशता के कारण मुनि वेष को नहीं छोड़ता किंतु विषयभोगों की खोज करता है ऐसा पुरुष "उभय भ्रष्टो न गृहस्थो.नापि प्रव्रजिता" - उभयभ्रष्ट होता है, क्योंकि वेष मात्र से तो वह मुनि है जबकि विचार और आचरण से गृहस्थ है।
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