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प्रथम अध्ययन - छठा उद्देशक - त्रसकाय हिंसा
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RRRR ४. सत्त्व - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वायुकाय इन चार स्थावर जीवों को 'सत्त्व' कहते हैं।
जैसा कि श्लोक में कहा है - . प्राणाः द्वि त्रि चतुः प्रोक्ताः भूतास्तु तरवः स्मृताः। जीवाः पञ्चेन्द्रियाः प्रोक्ताः शेषाः सत्वाः उदीरिताः॥
भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक १ में इन शब्दों की व्याख्या इस प्रकार की है - दश प्रकार के प्राण युक्त होने से प्राण हैं, तीनों काल के रहने के कारण भूत है। आयुष्य कर्म के कारण जीता है अतः जीव है। विविध पर्यायों का परिवर्तन होते हुए भी आत्मद्रव्य की सत्ता में कोई अंतर नहीं आता, अतः सत्त्व है।
. सकाय हिंसा
___(४८) ... तसंति पाणा पदिसो दिसासु य। तत्थ-तत्थ पुढो पास, आउरा परितावेंति संति पाणा पुढो सिया।
कठिन शब्दार्थ - 'दिसासु - दिशाओं में, पदिसु - विदिशाओं में, तसंति - त्रास पाते हैं, आउरा - आतुर, परितावेंति - परिताप देते हैं।
भावार्थ - ये प्राणी दिशाओं और विदिशाओं में त्रस्त-भयभीत रहते हैं। तू देख! विषयसुख के अभिलाषी आतुर मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रयोजनों से इन जीवों को परिताप देते रहते हैं। ये त्रसकायिक प्राणी पृथ्वी आदि के आश्रित भिन्न-भिन्न स्थानों में अर्थात् सर्वत्र हैं।
(४६) लजमाणा पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय समारंभेणं तसकायसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगांवे पाणे विहिंसड़। ____ भावार्थ - संयमी साधक सकाय की हिंसा में लज्जा का अनुभव करते हैं तू उन्हें पृथक् देख! अर्थात् त्रसकाय का आरम्भ करने वाले साधुओं से उन्हें भिन्न समझ।
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