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नववां अध्ययन - चौथा उद्देशक - निर्दोष आहार ग्रहण . ३३५ 李华华非事事非參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參
कठिन शब्दार्थ - वायसा - कौएं, दिगिंच्छित्ता - बुभुक्षित - भूख से व्याकुल, रसेसिणोपानी पीने के लिये आतुर, घासेसणाए - आहार पानी के लिए, णिवइए - जमीन पर गिरे हुए।
भावार्थ - भगवान् भूख से व्याकुल कौएं आदि तथा पानी पीने के लिए आतुर अन्य प्राणियों को सदा दाना पानी के लिए जमीन पर बैठे हुए देखकर वे उन्हें नहीं उड़ाते हुए विवेक पूर्वक चलते ताकि उनके आहार पानी में बाधा न पड़े।
(५२३) अदु माहणं व समणं वा, गामपिंडोलगं च अइहिं वा। सोवागं मूसियारिं वा, कुक्कुरं वा विट्टियं पुरओ॥
कठिन शब्दार्थ-माहणं - ब्राह्मण, समणं - श्रमण, गामपिंडोलगं - भिखारी, अइहिं - अतिथि, सोवागं - चाण्डाल, मूसियारिं - बिडाल-बिल्ली, ठियं - स्थित, पुरओ - आगे - सामने। . भावार्थ - अथवा ब्राह्मण, श्रमण, गांव के भिखारी अतिथि, चाण्डाल, बिल्ली या कुत्ते आदि नाना प्रकार के प्राणियों को आगे मार्ग में बैठा देख कर उनकी वृत्ति का भंग न करते हुए भिक्षार्थ गमन करते थे।
- (५२४) · वित्तिच्छेयं वजंतो, तेसऽप्पत्तियं परिहरंतो। .. मंदं परक्कमे भगवं, अहिंसमाणो पासमेसित्था॥
कठिन शब्दार्थ - वित्तिच्छेयं - वृत्ति (आजीविका) विच्छेद को, वजंतो - वर्जते हुए, अप्पत्तियं - अप्रीति को, परिहरंतो - दूर करके, मंदं - धीरे-धीरे, अहिंसमाणो - हिंसा न करते हुए, यासं एसित्था - आहार की गवेषणा करते थे। ... भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी उन जीवों की आजीविका का विच्छेद न हो तथा . उनके मन में अप्रीति (द्वेष) या अप्रतीति (भय) उत्पन्न न हो इसे ध्यान में रख कर धीरे-धीरे चलते थे और किसी भी जीव की हिंसा न करते हुए आहार पानी की गवेषणा करते थे।
विवेचन - साधु सब जीवों का रक्षक है। वह स्वयं कष्ट सह सकता है परन्तु अपने निमित्त से किसी भी प्राणी को कष्ट हो तो उस कार्य को वह कदापि नहीं कर सकता। साधु के
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