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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 8888888888888888888888@RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRE प्राप्ति हो जाती है। अतः जिस प्रकार भगवान् ने फरमाया है उसे उसी रूप में जान कर सब प्रकार से सर्वात्मना सम्यक्त्व (समत्व) को भलीभांति जान कर धारण करे।
आहार पडिमा
(४३५) जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहटु दलइस्सामि, आहडं च साइजिस्सामि १ जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहहु दलइस्सामि आहडं च णो . साइजिस्सामि २ जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ, अहं च खलु असणं वा ४ आहटु णो दलइस्सामि आहडं च साइजिस्सामि ३ जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ अहं च खलु अण्णेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहटु णो दलइस्सामि । आहडं च णो साइजस्सामि॥
अहं च खलु तेण अहाइरित्तेणं अहेसणिजेणं अहापरिग्गहिएणं असणेणं वा ४ अभिकंख साहम्मियस्स कुजा वेयावडियं करणाए, अहं वावि तेण अहाइरित्तेणं अहेसणिजेणं अहापरिग्गहिएणं असणेणं वा ४ अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साइजस्सामि लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया।
कठिन शब्दार्थ - दलइस्सामि - दूंगा, अहाइरित्तेण - यथातिरिक्तेन - अधिक लाए हुए आहार से या उपभोग में आने के बाद बचे हुए आहार आदि से।
— भावार्थ - १. जिस साधु का ऐसा अभिग्रह होता है कि मैं दूसरे साधर्मिक साधुओं को अशन, पान, खादिम, स्वादिम लाकर दूंगा और उनके द्वारा लाये हुए अशनादि का मैं उपभोग करूँगा।
२. जिस साधु का ऐसा अभिग्रह होता है कि मैं दूसरे साधर्मिक साधुओं को अशन, पान, खादिम, स्वादिम लाकर दूंगा परन्तु उनके लाये हुए आहारादि का उपभोग नहीं करूंगा।
३. जिस साधु को ऐसा अभिग्रह होता है कि मैं दूसरे साधर्मिक साधुओं के लिए अशन, पान, खादिम स्वादिम, लाकर नहीं दूंगा परन्तु उनके द्वारा लाये हुए अशनादि का मैं उपभोग करूँगा।
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