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________________ २६६ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 8888888888888888888@@@@@@@888888888888 ___भावार्थ - पण्डितों (तीर्थंकरों तथा श्रुतज्ञानियों) के वचन सुन कर, उन्हें हृदय में धारण कर मेधावी - मर्यादा में स्थित बुद्धिमान् पुरुष-समभाव को स्वीकार करे। समभाव में धर्म (४१४) समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए। भावार्थ - आर्य पुरुषों (तीर्थंकरों) ने समभाव से धर्म फरमाया है अथवा तीर्थंकरों ने समभाव में धर्म कहा है। विवेचन - मुमुक्षु पुरुष तीर्थंकर के वचनों को सुन कर तथा निश्चय करके समता को स्वीकार करे क्योंकि तीर्थंकर भगवान् ने समभाव से ही श्रुत चारित्र रूप धर्म का कथन किया है। . (४१५) . ते अणवकंखमाणा अणइवाएमाणा अपरिग्गहेमाणा णो परिग्गहावंति । सव्वावंति च णं लोगंसि। णिहाय दंडं पाणेहिं पावं कम्मं अकुव्वमाणे एस महं अगंथे वियाहिए, ओए जुइमस्स खेयण्णे उववायं चवणं च ग्रच्चा। . कठिन शब्दार्थ - अणवकंखमाणा - कामभोग की इच्छा न करते हुए, अणइवाएमाणा- . प्राणियों का अतिपात न करते हुए, अपरिग्गहेमाणा - परिग्रह का सेवन न करते हुए, णो परिग्गहावंति - अपरिग्रहवान् - परिग्रह रहित होते हैं, णिहाय - छोड़ कर, अकुव्वमाणे - न करता हुआ, अगंथे - अग्रन्थ - ग्रन्थ रहित - निर्ग्रन्थ, ओए - ओज - रागद्वेष रहित, जुइमस्स - द्युतिमान्। भावार्थ - वे कामभोग की इच्छा न करते हुए, प्राणियों के प्राणों का अतिपात न करते हुए और परिग्रह नहीं रखते हुए सम्पूर्ण लोक में अपरिग्रहवान् होते हैं। जो प्राणियों के लिए दण्ड का त्याग कर, पाप कर्म (हिंसादि) नहीं करता है, वह पुरुष ही महान् अग्रंथ - ग्रंथ रहित (निर्ग्रन्थ) कहा गया है। रागद्वेष रहित, संयम पालन या मोक्ष में द्युतिमान्, क्षेत्रज्ञ पुरुष उपपात (जन्म) और च्यवन (मरण) को जान कर शरीर की क्षण भंगुरता का विचार करे, पाप कर्मों से पृथक् रहे। विवेचन - समभाव से संपन्न, कामभोग की इच्छा न करने वाला और प्राणियों को दण्ड न देने वाला यावत् अठारह पाप का त्यागी पुरुष तीर्थंकरों द्वारा बाह्य और आभ्यंतर ग्रंथि से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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