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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 888888888888@@@gg BRRRRRRRRRRRRRRRRRR8888888888
भावार्थ - जो पुरुष शब्दादि विषयों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले शस्त्र - हिंसा आदि सावद्य अनुष्ठानों का खेदज्ञ - खेद का जानकार है वह अशस्त्र (संयम) के खेद को जानता है। जो निरवद्यानुष्ठान रूप संयम पालन के कष्टों (अशस्त्र) को जानता है वही शब्दादि विषयों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले सावद्यानुष्ठानों को भी जानता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में शस्त्र (असंयम) को घातक एवं अशस्त्र (संयम) को अघातक कहा है। शब्दादि विषयों की प्राप्ति के लिये किये जाने वाले हिंसादि सावध अनुष्ठान शस्त्र (असंयम) है जबकि संयम, पापरहित अनुष्ठान होने से अशस्त्र है। जो इष्ट अनिष्ट शब्दादि विषयों के सभी पर्यायों को उनके संयोग वियोग को शस्त्रभूत - असंयम को जानता है वह संयम को अविघातक एवं स्वोपकारी होने से अशस्त्रभूत मानता है। शस्त्र और अशस्त्र को भली भांति जानने वाला ही अशस्त्र (संयम) को प्राप्त करता है और शस्त्र (असंयम) का त्याग करता है।
सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र का हेतुहेतुमद्भाव से वर्णन किया है अर्थात् जो व्यक्ति संसार परिभ्रमण के कारणों का ज्ञाता है वह मोक्ष पथ का भी ज्ञाता हो सकता है।
. कर्मों से उपाधि
(१७५) ... अकम्मस्स ववहारो ण विज्जड, कम्मुणा उवाही जायइ।
कठिन शब्दार्थ - अकम्मस्स - अकर्म - कर्मों से रहित का, ववहारो - व्यवहार, ण विज्जइ - नहीं होता, कम्मुणो - कर्मों से ही, उवाही - उपाधि, जायइ - उत्पन्न होती है।
भावार्थ - जो पुरुष कर्मों से रहित, अकर्म हो जाता है उसका इस संसार में कोई व्यवहार नहीं होता है अर्थात् वह फिर संसार में नहीं आता है। कर्मों से उपाधि होती है। ..
विवेचन - कर्म और उसको संयोग से होने वाली आत्म-हानि का दिग्दर्शन कराया गया है। जो कर्मयुक्त हैं उसके लिए ही कर्म को लेकर नारेक, तिर्यंच, मनुष्य आदि की या एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक की, मंद बुद्धि, तीक्ष्ण बुद्धि, चक्षुदर्शनी आदि सुखी-दुःखी, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, स्त्री पुरुष, अल्पायु-दीर्घायु, सुभग-दुर्भग, उच्चगोत्री-नीचगोत्री, कृपण-दानी, सशक्तअशक्त आदि उपाधि-व्यवहार या विशेषण होता है। इन सब व्यवहारों का कारण (हेतु) कर्म
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