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दूसरा अध्ययन - पांचवाँ उद्देशक - काम-विरति
88888888888888888888888थी साधु पाप के मूल कारण परिग्रह का सर्वथा त्याग करे और संयम के साधन भूत धर्मोपकरणों में मूर्छा ममत्व न रखे। साधु धर्मोपकरणों को अन्यथा बुद्धि से देखे अर्थात् उनको संयम पालन का साधन समझे किन्तु उनमें ममत्व बुद्धि न रखे।
(१३०) एस मग्गे आरिएहिं पवेइए, जहित्थ कुसले णोवलिंप्पिज्जासित्ति बेमि। कठिन शब्दार्थ - आरिएहिं - आर्य पुरुषों द्वारा, णोवलिंप्पिज्जासि - उपलिप्त न हो।
भावार्थ - यह मार्ग आर्य - तीर्थंकरों ने प्रतिपादित किया है जिससे कुशल पुरुष परिग्रह में लिप्त न हो। - ऐसा मैं कहता हूँ। - विवेचन - तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित इस अनासक्ति के मार्ग पर चलने वाला कुशल पुरुष परिग्रह में लिप्त नहीं होता। यही निर्लेप जीवन जीने की कला है।
काम-विरति
(१३१) ____कामा दुरइक्कमा, जीवियं दुप्पडिबूहगं, कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ, जूरइ, तिप्पइ, पिड्डइ, परितप्पइ। ____कठिन शब्दार्थ - दुरइक्कमा - दुरतिक्रम - छोड़ना (जीतना) कठिन है, दुप्पडिबूहगंदुष्प्रतिबृहणीयं - बढ़ाया नहीं जा सकता, सोयइ - शोक करता है, जूरइ - खेद करता है, तिप्पड़ - रुदन करता है, पिड्डइ - दुःखी होता है, परितप्पइ - पश्चात्ताप करता है।
भावार्थ - काम को जीतना अत्यंत दुष्कर है। जीवन बढ़ाया नहीं जा सकता। कामभोगों की लालसा रखने वाला पुरुष निश्चय ही शोक करता है, खेद करता है, मर्यादा से भ्रष्ट होता है, दुःखी होता है और पश्चात्ताप करता है।
विवेचन - अनादिकाल से अभ्यस्त होने के कारण कामभोगों का जीतना बड़ा कठिन है। कामभोगों की लालसा रखने वाले पुरुष को जब इष्ट पदार्थ की प्राप्ति नहीं होती है अथवा उसका वियोग हो जाता है तब वह अत्यंत शोक करता है, हृदय में बड़ा खेद अनुभव करता है, शारीरिक, और मानसिक दुःखों से पीड़ित रहता है। कामासक्त पुरुष जब तक युवा रहता है तब
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