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________________ अनुयोगद्वार सूत्र णामणिप्फण्णे सामाइए। से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते । तंजहा - णामसामाइए १ ठवणासामाइए २ दव्वसामाइए ३ भावसामाइए ४ । णामठवणाओ पुव्वं भणियाओ । भावार्थ - नाम निष्पन्न निक्षेप का क्या स्वरूप है, (कितने प्रकार का होता है ) ? नामनिष्पन्न निक्षेप सामायिक (रूप ) है। यह चार प्रकार का बतलाया गया है सामायिक २. स्थापना सामायिक ३. द्रव्य सामायिक एवं ४. भाव सामायिक | ( प्रथम एवं द्वितीय भेद) नाम एवं स्थापना का वर्णन पूर्व में वर्णित किया जा चुका है. (वैसा ही यहाँ भी योजनीय है ) । ४८८ द्रव्य सामायिक दव्वसामाइए वि तहेव जाव सेत्तं भवियसरीरदव्वसामाइए । से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए पत्तयपोत्थयलिहियं । से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए । से तं णोआगमओ दव्वसामाइए । से तं दव्वसामाइए । भावार्थ - (तृतीय भेद) द्रव्य सामायिक का वर्णन भी भव्यशरीर द्रव्यसामायिक पर्यन्त ( द्रव्यावश्यक के वर्णन की तरह) ज्ञातव्य है । ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यसामायिक का क्या स्वरूप है? १. नाम पत्र या पुस्तक में लिखित ( सामायिक पद) ज्ञ शरीर भव्य शरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक है। यह ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक का स्वरूप है। इस प्रकार द्रव्यसामायिक के अन्तर्गत नोआगमतः द्रव्यसामायिक की विवेच्यता पूर्ण होती है । भाव सामायिक से किं तं भावसामाइए? भावसामाइए दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २ । भावार्थ - भाव सामायिक कितने प्रकार की कही गई है ? यह दो प्रकार की बतलाई गई है, यथा- १. आगमतः तथा २. नोआगमतः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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