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अनुयोगद्वार सूत्र
लोकोत्तरिक आय सचित्त, अचित्त और मिश्र के रूप में (यह) तीन प्रकार की कही गई है। से किं तं सचित्ते? सचित्ते-सीसाणं सि(स्स)स्सिणियाणं। सेत्तं सचित्ते। शब्दार्थ - सीसाणं - शिष्यों का, सिस्सिणियाणं - शिष्याओं का। भावार्थ - सचित्त (लोकोत्तरिक) आय का क्या स्वरूप है? शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति सचित्त लोकोत्तरिक आय के अन्तर्गत है। से किं तं अचित्ते? अचित्ते-पडिग्गहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुंछणाणं आए। सेत्तं अचित्ते। .
शब्दार्थ - पडिग्गहाणं - पतद्ग्रहाणां - पात्र, वत्थाणं - वस्त्रों को, पायपुंछणाणं - पाद-प्रोंछन।
भावार्थ - अचित्त लोकोत्तरिक आय का क्या स्वरूप है? पात्र, वस्त्र, कंबल एवं पादप्रोञ्छन की प्राप्ति अचित्त आय के अन्तर्गत है। से किं तं मीसए?
मीसए-सिस्साणं सिस्सिणियाणं सभंडोवगरणाणं आए। से तं मीसए। से तं लोगुत्तरिए। से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए। सेत्तं णोआगमओ दव्वाए। सेत्तं दव्वाए।
भावार्थ - मिश्र (लोकोत्तरिक) आय का क्या स्वरूप है? भंडोपकरणों सहित शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति मिश्र आय के अन्तर्गत है। यह लोकोत्तरिक मिश्र आय का स्वरूप है।
इस प्रकार नोआगमतः द्रव्य आय के अन्तर्गत ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आय का विवेचन पूर्ण होता है।
भाव - आय से किं तं भावाए? भावाए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २। भावार्थ - भाव-आय कितने प्रकार की होती है? यह आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है।
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