________________
अक्षीण निरूपण
४७५
अक्षीण निरूपण से किं तं अज्झीणे?
अज्झीणे चउव्विहे पण्णत्ते। तंजहा - णामज्झीणे १ठवणज्झीणे २ दव्वज्झीणे३ भावज्झीणे ४।
भावार्थ - अक्षीण कितने प्रकार का कहा गया है?
यह चार प्रकार का बतलाया गया है - १. नाम-अक्षीण २. स्थापना-अक्षीण ३. द्रव्यअक्षीण एवं ४. भाव-अक्षीण। .
विवेचन - ‘झीण' का संस्कृत रूप क्षीण होता है। यह मिटने के अर्थ में प्रवृत्त 'क्षि' धातु का क्त प्रत्ययान्त कृदन्त रूप है। जो क्षीण नहीं होता उसे अक्षीण कहा जाता है। जो अध्ययन शिष्य-प्रशिष्य आदि की सतत् गतिशील परम्परा के कारण कभी क्षीण नहीं होता, मिटता नहीं वह अक्षीण कहा जाता है। .. णामठवणाओ पुव्वं वण्णियाओ।
भावार्थ - नाम और स्थापना (अक्षीण) का वर्णन पूर्व वर्णनानुसार योजनीय है। से किं तं दव्वज्झीणे? . . दव्वज्झीणे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २। भावार्थ - द्रव्य अक्षीण कितने प्रकार का होता है? यह आगमतः और नोआगमतः के रूप में दो प्रकार का है। से किं तं आगमओ दव्वज्झीणे?
आगमओ दव्वज्झीणे - जस्स णं 'अज्झीणे' त्ति पयं सिक्खियं ठियं, जियं, मियं, परिजियं जाव सेत्तं आगमओ दव्वज्झीणे।
भावार्थ - आगमतः द्रव्य अक्षीण का क्या स्वरूप है?
जिसने अक्षीण इस पद को (गुरु से) सीखा है, स्थिर, जित, मित और परिजित किया है यावत् (पूर्वानुसार वर्णन यहाँ भी योजनीय है) वह आगमतः द्रव्य अक्षीण है।
से किं तं णोआगमओ दव्वज्झीणे?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org