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________________ ४७२ अनुयोगद्वार सूत्र से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झयणे? जाणयसरीरदव्वज्झयणे अज्झयणपयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरं ववगयचुयचाविय चत्तदेहं, जीवविप्पजढं जाव अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिटेणं भावेणं अज्झयणे' त्ति पयं आघवियं जाव उवदंसियं। जहा को दिटुंतो? अयं घयकुंभे आसी, अयं महकुंभे आसी। सेत्तं जाणयसरीरदव्वज्झयणे। भावार्थ - ज्ञ शरीर द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है? जिसने अध्ययन पद के अधिकार को जाना है, उसके चेतना रहित, प्राण शून्य, अनशन द्वारा मृत देह को (शय्या संस्तारकगत) देखकर कोई कहे यावत् अरे! दैहिक पुद्गल समुच्चय रूप शरीर द्वारा इसने जितेन्द्र देव समुपदिष्ट आवश्यक पद को सम्यक् गृहीत किया यावत् विविध रूप में उसकी प्रज्ञापना की। (प्रश्न उपस्थित होता है) क्या इस संदर्भ में कोई दृष्टांत है? ___(समाधान है) जैसे एक रिक्त घट है, जिसमें पहले घृत या मधु था। वर्तमान में रिक्त होने पर भी उन्हें क्रमशः घृत घट एवं मधु घट कहा जाता है। (यही तथ्य ज्ञ शरीर के साथ योजनीय है)। यह ज्ञ शरीर द्रव्य अध्ययन का स्वरूप है। से किं तं भवियसरीरदव्वज्झयणे? भवियसरीरदव्यज्झयणे - जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खंते, इमेणं चेव आयत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिटेणं भावेणं 'अज्झयणे' त्ति पयं सेयकोले सिक्खिस्सइ ण ताव सिक्खइ। जहा को दिटुंतो? अयं घयकुंभे भविस्सइ, अयं महुकुंभे भविस्सइ। सेत्तं भवियसरीरदव्वज्झयणे। भावार्थ - भव्यशरीर द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है? योनिरूप जन्म स्थान से निःसृत किसी जीव को शरीर भविष्य में वीतराग प्ररूपित भावानुरूप अध्ययन इस पद को सीखेगा किन्तु वर्तमान में नहीं सीख रहा है (भावी पर्याय की अपेक्षा से) वह भव्य शरीर द्रव्य अध्ययन कहलाता है। इस संदर्भ में क्या कोई दृष्टांत है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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