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________________ अनन्तानन्त का निरूपण •४५३ -+ + + + + + + + युक्तानन्त का स्वरूप जहण्णयं जुत्ताणतयं केवइयं होइ? जहण्णयपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्ताणंतयं होइ। अहवा उक्कोसए परित्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्ताणतयं होइ। अभवसिद्धिया वि तत्तिया होति। तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्ताणतयं ण पावइ।। भावार्थ - जघन्य युक्तानंत कियत्प्रमाण होता है? जघन्य परित्तानन्त मात्र राशि को उसी राशि से गुणित करने से प्राप्त प्रतिपूर्ण राशि जघन्य युक्तानन्त है। अथवा उत्कृष्ट परित्तानन्त राशि में एक को प्रक्षिप्त कर देने पर - जोड़ने पर जघन्य युक्तानन्त राशि प्राप्त होती है। __ अभवसिद्धिक - अभव्य जीव भी उतने ही जघन्य युक्तान्त परिमित होते हैं। तत्पश्चात् अजघन्य-अनुत्कृष्ट - मध्यम स्थान यावत् उत्कृष्ट युक्तानन्त के प्राप्त न होने तक - अर्थात् उससे पूर्व तक हैं। उक्कोसयं जुत्ताणतयं केवइयं होइ? - जहण्णएणं जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्ताणंतर्य होइ। अहवा जहण्णयं अणंताणतयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ। भावार्थ - उत्कृष्ट युक्तानंत कियत्प्रमाण होता है? जघन्य युक्तानन्त राशि को अभवसिद्धिक जीव राशि के साथ गुणित करने पर प्राप्त राशि में से एक को कम कर देने पर जो राशि प्राप्त होती है, वह उत्कृष्ट युक्तानंत है। अथवा एक कम जघन्य अनन्तानन्त उत्कृष्ट युक्तानन्त है। - अनन्तानन्त का निरूपण जहण्णयं अणंताणंतयं केवइयं होइ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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