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________________ ३६४ अनुयोगद्वार सूत्र से किं तं णाणगुणप्पमाणे? णाणगुणप्पमाणे चउब्विहे पण्णत्ते। तंजहा - पच्चक्खे १ अणुमाणे २ ओवम्मे ३ आगमे ।। भावार्थ - ज्ञानगुण प्रमाण कितने प्रकार का बतलाया गया है? यह चार प्रकार का कहा गया है - १. प्रत्यक्ष २. अनुमान ३. उपमान और ४. आगम। से किं तं पच्चक्खे? पच्चक्खे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - इंदियपच्चक्खे य १ णोइंदियपच्चक्खे य २। भावार्थ - प्रत्यक्ष प्रमाण कितने प्रकार का होता है? यह इन्द्रिय प्रत्यक्ष एवं नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष के रूप में दो प्रकार का बतलाया गया है। से किं तं इंदियपच्चक्खे? इंदियपच्चक्खे पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - सोइंदियपच्चक्खे १ चक्खुरिदियपच्चक्खे २ घाणिंदियपच्चक्खे ३ जिभिंदियपच्चक्खे ४ फासिंदियपच्चक्खे ५। सेत्तं इंदियपच्चक्खे। भावार्थ - इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का परिज्ञापित हुआ है? - यह पांच प्रकार का बतलाया गया है - १. श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष २. चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष ३. घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष ४. जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष ५. स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष। यह इन्द्रिय प्रत्यक्ष का स्वरूप है। से किं तं णोइंदियपच्चक्खे? णोइंदियपच्चक्खे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - ओहिणाणपच्चक्खे १ मणपजवणाणपच्चक्खे २ केवलणाणपच्चक्खे ३। सेत्तं णोइंदियपच्चक्खे। सेत्तं पच्चक्खे। भावार्थ - नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का परिज्ञापित हुआ है? यह १. अवधिज्ञान प्रत्यक्ष २. मनःपर्यवज्ञान प्रत्यक्ष और ३. केवलज्ञान प्रत्यक्ष के रूप में तीन प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। इस प्रकार प्रत्यक्ष का निरूपण परिसमाप्त होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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