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________________ वैमानिक देवों के बद्ध-मुक्त शरीर ३८६ (ज्योतिष्क देवों के) आहारक शरीरों का वर्णन नैरयिकों की भांति कथनीय है। (ज्योतिष्क देवों के) तैजस्-कार्मण शरीरों का वर्णन इनके (ऊपर वर्णित) वैक्रिय शरीरों के सदृश जानना चाहिए। विवेचन - यहाँ पर जो श्रेणियों की विष्कंभसूची - 'दो सौ छप्पन प्रतरांगुल के वर्गमूल रूप अंश प्रमाण' बताई है। इसका आशय इस प्रकार समझना चाहिए - ‘दो सौ छप्पन अंगुल जितने लम्बे और चौड़े प्रतर खंड पर एक-एक ज्योतिषी देव को रखने पर पूरा प्रतर भर जाता है अर्थात् प्रतर में जितने ये खंड समावेश होते हैं, उतने ज्योतिषी देव हैं।' वाणव्यंतर देवों से इनकी विष्कंभसूची संख्यातगुणी अधिक है और प्रतरखंड संख्यात गुण हीन होने से ये देव वाणव्यंतर देवों से संख्यात गुणे अधिक होते हैं। वैमानिक देवों के बद्ध-मुक्त शरीर वेमाणियाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णता? गोयमा! जहा णेरइयाणं तहा भाणियव्वा। वेमाणियाणं भंते! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखिज्जा, असंखिजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखिजाओ सेढीओ पयरस्स असंखेजइभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलबीयवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण्णं अहव णं अंगुलतइयवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियव्वा। आहारगसरीरा जहा णेरइयाणं। तेयगकम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव वेउव्वियसरीरा तहा भाणियव्वा। सेत्तं सुहमे खेत्तपलिओवमे। सेत्तं खेत्तपलिओवमे। सेत्तं पलिओवमे। सेत्तं विभागणिप्फण्णे। सेत्तं कालप्पमाणे। भावार्थ - हे भगवन्! वैमानिक देवों के कितने औदारिक शरीर कहे गए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! जिस प्रकार नैरयिकों के वर्णन में बतलाया गया है, उसी प्रकार यहाँ कथनीय है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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