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अनुयोगद्वार सूत्र
पृथ्वी - अप्-तेजस्कायिक जीवों के बद्ध-मुक्त शरीर
पुढविकाइयाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता! तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २ । एवं जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा ।
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पुढविकाइयाणं भंते! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ जे ते बद्धेल्या ते णं णत्थि । मुक्केल्लया जहा ओहियाणं ओरालियसरीरां तहा भाणियव्वा ।
आहारगसरीरा वि एवं चेव भाणियव्वा । तेयगकम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा । जहा पुढविकाइयाणं एवं आउकाइयाणं ते उकाइयाण य सव्वसरीरा भाणियव्वा ।
भावार्थ - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने औदारिक शरीर प्रज्ञप्त हुए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! ये दो प्रकार के कहे गए हैं - १. बद्ध और २ मुक्त ।
इन दोनों औदारिक शरीरों के विषय में सामान्य औदारिक शरीरों की भांति विवेचन कथनीय है।
हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने वैक्रिय शरीर कहे गये हैं?
हे आयुष्मन् गौतम! ये बद्ध और मुक्त के रूप में दो प्रकार के कहे गए हैं।
इनमें जो बद्ध हैं, वे इनके नहीं होते हैं। मुक्त के विषय में सामान्य वैक्रिय शरीरों की तरह जानना चाहिए।
आहारक शरीरों की वक्तव्यता पूर्वानुसार ज्ञातव्य है ।
तेजस्- कार्मण शरीरों के संदर्भ में भी जैसा औदारिक शरीरों के विषय में ऊपर वर्णन आया है, वैसा यहाँ ग्राह्य है।
वायुकायिक जीवों के बद्ध-मुक्त शरीर
वाउकाइयाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ?
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