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________________ ३७६ अनुयोगद्वार सूत्र द्वितीय वर्गमूल से गुणित करने से निष्पन्न राशि सदृश होती है। अथवा अंगुल के द्वितीय वर्गमूल के घनफल प्रमाण श्रेणियों जितनी है। ___ मुक्त वैक्रिय शरीर सामान्यतः मुक्त औदारिक शरीर के तुल्य ज्ञातव्य है। विवेचन - इस सूत्र में श्रेणियों के विष्कंभ परिमाण की चर्चा गणित की दृष्टि से बतलाई गई है। किसी भी वर्गाकार स्थान की लम्बाई-चौड़ाई को परस्पर गुणा करने पर जो गुणनफल आता है, उसे क्षेत्रफल (Area) कहा जाता है। लम्बाई या चौड़ाई का परिमाण है, उसे वर्गमूल (Square Root) कहा जाता है। लम्बाई या चौड़ाई के परिमाप को तीन बार गुणित करने पर जो फल आता है, उसे घनफल तथा मूल संख्या को घनमूल कहा जाता है। ___ उदाहरणार्थ - १० को वर्गमूल मानकर क्षेत्रफल निकाला जाय तो १०x१० = १०० होता है। घनफल निकाला जाय तो १०x१०x१०=१००० होता है। १०० क्षेत्रफल का वर्गमूल १० है तथा १००० घनफल का घनमूल - १० है। अर्थात् इनके वर्गमूल एवं घनमूल समान हैं। णेरइयाणं भंते! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं णत्थि। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया तहा भाणियव्वा। तेयगकम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव वेउब्वियसरीरा तहा भाणियव्वा। भावार्थ - हे भगवन्! नैरयिक जीवों के कितने आहारक शरीर प्रज्ञप्त हुए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! इनके बद्ध और मुक्त के रूप में दो शरीर बतलाए गए हैं। उनमें जो बद्ध आहारक शरीर हैं, वे इनके नहीं होते तथा जो मुक्त हैं, उनको सामान्य औदारिक शरीरों के समान ही जानना चाहिए। तैजस और कार्मण शरीरों के विषय में जैसा इनके वैक्रिय शरीरों के बारे में कहा गया है, उसी प्रकार कथनीय है। भवनवासियों के बद्ध-मुक्त शरीर असुरकुमाराण भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता? गोयमा! जहा णेरइयाणं ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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