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________________ तैजस शरीर संख्या परिमाण अंतर जघन्यतः एक समय का और उत्कृष्टतः छह मास का होता है। इसके अनुसार जवन्य या उत्कृष्ट किसी भी प्रकार के विरहकाल में उनका बद्धत्व घटित नहीं होता है। पुनश्च, इस संबंध में ज्ञातव्य है आहारक शरीरों की संख्या जघन्यतः एक, दो या तीन होती हैं और उत्कृष्टतः दो हजार या तीन हजार परिमित हो सकती है। नव हजार यहां पर नहीं समझना चाहिए। - तैजस शरीर संख्या परिमाण Jain Education International केवइया णं भंते! तेयगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २ । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सिद्धेहिं अनंतगुणा, सव्वजीवाणं अनंतभागूणा । तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सव्वजीवेहिं अणंतगुणा, सव्वजीववग्गस्स अनंतभागो । शब्दार्थ - तेयग - तैजस । - भावार्थ - हे भगवन्! तैजस शरीर कितने प्रकार के बतलाए गये हैं? हे आयुष्मन् गौतम! तैजस शरीर दो प्रकार के कहे गए हैं १. बद्ध और २. मुक्त। उनमें जो बद्ध हैं, वे अनंत हैं। ये कालापेक्षया अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी द्वारा अपहृत होते हैं। क्षेत्रापेक्षया वे अनंत लोक प्रमाण हैं । द्रव्यापेक्षया सिद्धों से अनंत गुणे और समस्त जीवों से अनंत भाग कम हैं। इनमें जो मुक्त तेजस शरीर हैं, वे अनंत हैं। कालापेक्षया अनंत उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी द्वारा अपहृत होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से अनंत लोक प्रमाण हैं, द्रव्य की अपेक्षा से समस्त जीवापेक्षया अनंत गुणे और सभी जीवों के वर्ग की अपेक्षा अनंतवें भाग प्रमाण हैं। विवेचन - मुक्त तैजस शरीरों का संख्या परिमाण समस्त जीवों से अनंत गुणा ब गया है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक जीव भूतकाल में अनंतानंत तैजस शरीरों का परित्याग कर चुका है। जीवों द्वारा जब उनका परित्याग कर दिया जाता है तब उन परित्यक्त शरीरों का ३७३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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