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सूक्ष्म उद्धारपल्योपम
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एक-एक बालाग्र खण्ड को निकालने से जितने काल में वह कुआं पूरा खाली हो जावे उतने काल को एक सूक्ष्म उद्धार पल्योपम कहते हैं। इसका परिमाण असंख्याता वर्ष कोटि का होता है। (टीका आदि में संख्याता वर्ष कोटि का कहा है, वह उचित नहीं लगता है) इनको दस कोडाकोडी से गुणा करने पर एक सूक्ष्म उद्धार सागरोपम होता है। इनके द्वारा द्वीप समुद्रों की संख्या का ज्ञान किया जाता है। अढ़ाई सूक्ष्म उद्धार सागरोपम के समयों जितने परिमाण के कुल मिलाकर द्वीप समुद्र होते हैं।
केवइया णं भंते! दीवसमुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता?
गोयमा! जावइया णं अड्डाइजाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया एवइया णं दीवसमुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता। सेत्तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे। सेत्तं उद्धारपलिओवमे।
शब्दार्थ - केवइया - कितने, एवइया - इतने। भावार्थ - हे भगवन्! उद्धार प्रमाण द्वारा कितने द्वीप समुद्र माने गए हैं?
आयुष्मन् हे गौतम! अढाई उद्धार सागरोपम के जितने उद्धार समय हैं, उतने ही द्वीप समुद्र प्रज्ञप्त हुए हैं।
यह सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का स्वरूप है।
यहाँ उद्धार पल्योपम का निरूपण परिसंपन्न होता है। - विवेचन - अढ़ाई उद्धार सागरोपम में २५ कोटि-कोटि उद्धार पल्योपम होते हैं। अर्थात् इतने कुएं बालाग्र खंडों से पूर्ण खाली हो जावे उतने गिनती में द्वीप एवं समुद्रों की मिलाकर संख्या होती है।
प्रश्न - 'सूक्ष्म उद्धार पल्योपम के बालाग्र खण्डों की राशि कितनी होती है?
उत्तर - अनुयोगद्वार सूत्र की टीका व बृहद्संग्रहणी, ठिइबंधो आदि ग्रन्थों में उद्धार पल्योपम के समयों को (या बालाग्र खण्डों को) 'संख्यात कोटिवर्ष के समयों जितना' माना है। जीवाभिगम सूत्र की टीका में व अनेक ग्रन्थों में - ‘अनुत्तर देवों का परिमाण' - अद्धापल्योपम के असंख्यातवें भाग' जितना बताया है। ये दोनों कथन परस्पर विरोध युक्त दृष्टिगोचर होते हैं।
इस संबंध में विचारणा - 'बालाग्र खण्डों को-संख्यात कोटि वर्ष प्रमाण या संख्याता आवलिकाओं प्रमाण मानने पर वे (बालाग्र खण्ड) बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवों के असंख्यातवें भाग जितने ही होंगे तथा बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवों की संख्या असंख्यात पल्योपमों
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