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य २ ।
अनुयोगद्वार सूत्र
(१३५)
३. कालप्रमाण
से किं तं कालप्पमाणे?
कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - पएसणिप्फण्णे य १ विभागणिप्फण्णे
भावार्थ - कालप्रमाण के कितने भेद प्रज्ञप्त हुए हैं?
कल प्रमाण दो प्रकार का बतलाया गया है - १. प्रदेश निष्पन्न एवं २. विभाग निष्पन्न । ( १३६)
से किं तं पएसणिप्फण्णे?
पएसणिफण्णे - एग समयट्ठिईए, दुसमयट्ठिईए, तिसमयट्ठिईए जाव दससमयट्ठिईए, संखिज्जसमयट्ठिईए, असंखिज्जसमयट्ठिईए । से तं पएसणिप्फण्णे ॥ भावार्थ - प्रदेशनिष्पन्न काल प्रमाण का क्या स्वरूप है ?
प्रदेशनिष्पन्न काल प्रमाण एक समय स्थितिक, द्विसमयस्थितिक, त्रिसमयस्थितिक यात् दससमय स्थितिक, संख्यात समयस्थितिक, असंख्यात समयस्थितिक है ।
यह प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण का निरूपण है।
(१३७)
से किं तं विभागणिप्फण्णे ?
विभागणिफणणे. -
गाहा - समयावलिय मुहुत्ता, दिवस अहोरत्त पक्ख मासा य । संवच्छर जुग पलिया, सागर ओसप्पि परियट्टा ॥१॥
शब्दार्थ - अहोरत्त - अहोरात्र, संवच्छर - संवत्सर, पलिया पल्योपम, ओसप्पि
अवसर्पिणी (या उत्सर्पिणी), परियट्टा - परावर्त्त ।
भावार्थ - विभागनिष्पन्न कालप्रमाण का कैसा स्वरूप है ?
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