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________________ ३१२ य २ । अनुयोगद्वार सूत्र (१३५) ३. कालप्रमाण से किं तं कालप्पमाणे? कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - पएसणिप्फण्णे य १ विभागणिप्फण्णे भावार्थ - कालप्रमाण के कितने भेद प्रज्ञप्त हुए हैं? कल प्रमाण दो प्रकार का बतलाया गया है - १. प्रदेश निष्पन्न एवं २. विभाग निष्पन्न । ( १३६) से किं तं पएसणिप्फण्णे? पएसणिफण्णे - एग समयट्ठिईए, दुसमयट्ठिईए, तिसमयट्ठिईए जाव दससमयट्ठिईए, संखिज्जसमयट्ठिईए, असंखिज्जसमयट्ठिईए । से तं पएसणिप्फण्णे ॥ भावार्थ - प्रदेशनिष्पन्न काल प्रमाण का क्या स्वरूप है ? प्रदेशनिष्पन्न काल प्रमाण एक समय स्थितिक, द्विसमयस्थितिक, त्रिसमयस्थितिक यात् दससमय स्थितिक, संख्यात समयस्थितिक, असंख्यात समयस्थितिक है । यह प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण का निरूपण है। (१३७) से किं तं विभागणिप्फण्णे ? विभागणिफणणे. - गाहा - समयावलिय मुहुत्ता, दिवस अहोरत्त पक्ख मासा य । संवच्छर जुग पलिया, सागर ओसप्पि परियट्टा ॥१॥ शब्दार्थ - अहोरत्त - अहोरात्र, संवच्छर - संवत्सर, पलिया पल्योपम, ओसप्पि अवसर्पिणी (या उत्सर्पिणी), परियट्टा - परावर्त्त । भावार्थ - विभागनिष्पन्न कालप्रमाण का कैसा स्वरूप है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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