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________________ उत्सेधांगुल : भेद एवं अल्प-बहुत्व ३०७ यहाँ उत्तरवैक्रिय देहावगाहना सौधर्मकल्प के सदृश ज्ञातव्य है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत-इन चारों ही कल्पों में भवधारणीय अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः तीन रत्नि होती है। इनकी उत्तर वैक्रिय शरीरावगाहना (भी) सौधर्म कल्पानुसार ग्राह्य है। ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक देवों की अवगाहना गेवेजगदेवाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! एगे भवधारणिजे सरीरगे पण्णत्ते। से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं दुण्णि रयणीओ। .. अणुत्तरोववाइयदेवाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! एगे भवधारणिज्जे सरीरगे पण्णत्ते। से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं एगा रयणी उ। भावार्थ - हे भगवन्! ग्रैवेयक देवों की शरीरावगाहना कितनी बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! ग्रैवेयक देवों में केवल (एक) भवधारणीय शरीरावगाहना होती है। यह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः दो रत्नि होती है। . हे भगवन्! अनुत्तरोपपातिक देवों की शरीरावगाहना कितनी प्रज्ञप्त हुई है? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी (भी शरीरावगाहना) केवल (एक) भवधारणीय प्रज्ञप्त हुई है। यह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः एक रत्नि परिमित होती है। विवेचन - ग्रैवेयक एवं अनुत्तरोपपातिक देव उत्तरविक्रिया नहीं करते। अतः विकुर्वणा के अभाव में केवल उनके भवधारणीय शरीर की अवगाहना ही यहाँ बतलाई गई है। इन देवों में उत्सुकता एवं चंचलता नहीं होने से ये देव उत्तरवैक्रिय रूपों की विकुर्वणा नहीं करते हैं। ... उत्सेधांगुल : भेद एवं अल्प-बहुत्व से समासओ तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - सूइअंगुले १ पयरंगुले २ घणंगुले ३। एगंगुलायया एगपएसिया सेढी सूइअंगुले, सूई सूईए गुणिया पयरंगुले, पयरं सूईए गुणियं घणंगुले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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