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________________ ३०४ अनुयोगद्वार सूत्र मनुष्यगति देहावगाहना मणुस्साणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। सम्मुच्छिममणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं। गब्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं। पज्जत्तगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। शब्दार्थ - मणुस्साणं - मनुष्यों की। भावार्थ - हे भगवन्! मनुष्यों की शरीरावगाहना कियत् विस्तीर्ण बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! मनुष्यों की शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः तीन गव्यूति होती है। सम्मूर्छिम मनुष्यों की अवगाहना के विषय में प्रश्न है। हे आयुष्मन् गौतम! सम्मूर्छिम मनुष्यों की अवगाहना कम से कम अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा अधिक से अधिक भी अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है। गर्भव्युत्क्रांतिक मनुष्यों की शरीरावगाहना के विषय में पृच्छा है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है, उत्कृष्ट तीन गव्यूति होती है। अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रांतिक मनुष्यों की शरीरावगाहना के विषय में जिज्ञासा है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः देहावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः भी अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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