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________________ पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की अवगाहना गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं । सम्मुच्छिम भुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियाणं पुच्छा । गोयमा! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं । अपज्जत्तगसम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयराणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं । २६६ पज्जत्तगसम्मुच्छिमभुयपरिसप्पाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं । गब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयराणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं । अपज्जत्तगभुयपरिसप्पाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगभुयपरिसप्पाणं पुच्छा। गोयमा! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं । भावार्थ :- चतुष्पद-थलचर - पंचेन्द्रिय - तिर्यंच योनिक जीवों की अवगाहना के संदर्भ में प्रश्न हैं। आयुष्मन् गौतम! चतुष्पद - थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक जीवों की अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः छह गव्यूति है । सम्मूर्च्छिम-चतुष्पद - थलचर- जीवों की अवगाहना के संदर्भ में जिज्ञासा है। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः गव्यूति पृथक्त्व ( दो से छह गव्यूति) परिमित है। अपर्याप्तक- सम्मूर्च्छिम-चतुष्पद - थलचर जीवों की अवगाहना के संदर्भ में प्रश्न है। आयुष्यमन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः भी अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है। पर्याप्तक-सम्मूर्च्छिम-चतुष्पद - थलचर जीवों की अवगाहना के विषय में जिज्ञासा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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