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________________ पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की अवगाहना अपज्जत्तगाणं जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणं - जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं । भावार्थ - भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों के संबंध में भी (पूर्ववत्) प्रश्न या जिज्ञासा है। आयुष्मन् गौतम! उनकी देहावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग तुल्य तथा उत्कृष्टतः तीन गव्यूति होती है। अपर्याप्तों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः भी अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है। पर्याप्तों की जघन्यतः अंगुल के असंख्येय भाग जितनी तथा उत्कृष्टः तीन गव्यूति प्रमाण होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों की अवगाहना - चउरिंदियाणं पुच्छा गोयमा ! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं । अपज्जत्तगाणं - जहणेणं० उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणंजहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं । भावार्थ - हे भगवन्! चतुरिन्द्रिय जीवों के संदर्भ में भी इसी प्रकार प्रश्न किया गया है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग के तुल्य दोनों तथा उत्कृष्टतः चार गव्यूति परिमित होती है। अपर्याप्तों की जघन्यतः तथा उत्कृष्टतः रूपों में अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है, पर्याप्तों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः चार गव्यूति परिमित होती है। Jain Education International २६५ - पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की अवगाहना पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! एवं चेव । सम्मुच्छिमजलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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