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व्यावहारिक परमाणु का विश्लेषण
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हाँ, वह शीघ्र गमनशील हो सकता है। क्या वह (प्रतिस्रोत) उसका अवरोध नहीं करता? नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अप्काय रूप शस्त्र उस पर अप्रभावी रहता है। विवेचन - यहाँ प्रयुक्त प्रतिस्रोत शब्द के संदर्भ में ज्ञातव्य है -
स्रोत शब्द के पूर्व अनु एवं प्रति उपसर्ग लगाने से अनुस्रोत एवं प्रतिस्रोत बनते हैं। 'स्रोतसम अनुगच्छति इति अनुसोतः' 'सोतसम प्रति, विपरीतं गच्छतीति प्रतिसोतः।'
प्रवाह के अनुकूल चलना अनुस्रोत है तथा उसके विपरीत (सामने) चलना प्रतिस्रोत है। अनुस्रोत में सहजता है, प्रतिस्रोत में विपथगामिता रूप वैशिष्ट्य है।
यहाँ व्यावहारिक परमाणु के इसी वैशिष्टय का संसूचन है। से णं भंते! उदगावत्तं वा उदगबिंदु वा ओगाहेज्जा? हंता! ओगाहेजा। से णं तत्थ कुच्छेज्ज वा परियावज्जेज वा? णो इणढे समढे, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ। गाहा - सत्थेण सुतिक्खेण वि, छित्तुं भेत्तुं च जंण किर सक्का।
तं परमाणु सिद्धा, वयंति आई पमाणाणं॥१॥ शब्दार्थ - उदगावत्तं - जल भंवर, उदगबिंदु - जल की बूंदे, कुच्छेज - कुत्सित, परियावजेज - परियावर्जित - रूप परिवर्तित, सुतिक्खेण - अत्यंत तीक्ष्ण, किर - किलनिश्चय ही, वयंति - कहते हैं, आई - आदि।
भावार्थ - हे भगवन्! क्या वह (व्यावहारिक परमाणु) जलभंवर या जलबिन्दु में अवगाहन कर सकता है?
हाँ, वह अवगाहन कर सकता है। क्या वह उनमें कुत्सित - मैला या रूपपरिवर्तित हो जाता है? नहीं, ऐसा संभव नहीं है। अप्काय रूपी शस्त्र उस पर कारगर नहीं होता।
गाथा - अत्यंत तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा उसका छेदन-भेदन नहीं किया जा सकता। सिद्धों ने (सयोगी केवलियों) ने उसे प्रमाणों में आदि कहा है ॥१॥
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