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________________ क्षायिक भाव १७३ उपशम का क्या स्वरूप है? मोहनीय कर्म के उपशम से होने वाला भाव उपशम कहा जाता है। से किं तं उवसमणिप्फण्णे? उवसमणिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा - उवसंतकोहे जाव उवसंतलोभे, उवसंतपेजे, उवसंतदोसे उवसंतदसणमोहणिजे, उवसंतचरित्त मोहणिजे, उवसामिया सम्मत्तलद्धी, उवसामिया चरित्तलद्धी, उवसंतकसायछउमत्थवीयरागे। सेत्तं उवसमणिप्फण्णे। सेत्तं उवसमिए। शब्दार्थ - उवसंत पेजे - उपशांतप्रेम - उपशांत राग, उवसंतलद्धी - उपशांत लब्धि, उवसंतदोसे - उपशांत द्वेष, उवसंतकसाय - छउमत्थवीयरागे - उपशांत कषाय छद्मस्थ वीतराग। भावार्थ - उपशमनिष्पन्न भाव कितने प्रकार का है? उपशमनिष्पन्न भाव अनेक प्रकार का कहा गया है - उपशांत क्रोध यावत् उपशांत लोभ, उपशांत राग, उपशांत द्वेष, उपशांत दर्शन मोहनीय, उपशांत चारित्र मोहनीय, उपशांत सम्यक्त्व लब्धि, उपशांत चारित्र लब्धि, उपशांत कषाय छद्मस्थ वीतराग - ये उपशम निष्पन्न भाव हैं। उपशम निष्पन्न का यह निरूपण है। यों औपशमिक भाव का निरूपण सम्पन्न होता है। - विवेचन - उपर्युक्त सूत्र में आये हुए कुछ शब्दों का आशय इस प्रकार है - ‘उवसामिया सम्मत्तलद्धी' एवं 'उवसंतदंसणमोहणिजे' इन दोनों में कार्य एवं कारण भाव का संबंध है। अर्थात् औपशमिक सम्यक्त्वलब्धि कार्य है एवं उपशांत दर्शन मोहनीय कारण है। इसी प्रकार 'उवसामिया चरित्तलद्धी' एवं 'उवसंतचरित्त मोहणिजे' इन दोनों शब्दों में भी कार्य कारण भाव का संबंध समझना चाहिये। औपशमिक सम्यक्त्व लब्धि चौथे गुणस्थान से हो सकती है। औपशमिक चारित्र लब्धि ग्यारहवें गुणस्थान में ही होती है। क्षायिक भाव से किं तं खइए? खइए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - खइए य १ खयणिप्फण्णे य २। से किं तं खइए? खइए - अट्ठण्हं कम्मपयडीणं खएणं। सेत्तं खइए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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