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________________ १६८ अनुयोगद्वार सूत्र (१२६) पंचनाम से किं तं पंचणामे? पंचणामे पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा-णामिकं १ णैपातिकं २ आख्यातिकं ३ औपसर्गिकं ४ मिश्रम् ५। 'अश्व' इति णामिकं, ‘खलं' इति णैपातिकं, 'धावति' इति आख्यातिकं, 'परि' इत्यौपसर्गिकं, 'संयत' इति मिश्रम्। सेत्तं पंचणामे। भावार्थ - पंचनाम कितने प्रकार का है? पंचनाम पाँच प्रकार का प्रतिपादित हुआ है - १. नामिक २. नैपातिक ३. आख्यातिक ४. औपसर्गिक एवं ५. मिश्र। ___ इनके उदाहरण इस प्रकार हैं - अश्व नामिक है, खलु नैपातिक है, धावति आख्यातिक . है, परि औपसर्गिक है तथा संयत मिश्र है। यह पंचनाम का निरूपण है। विवेचन - उपर्युक्त सूत्र में जिन पाँच भेदों का उल्लेख है, उनमें समग्र शब्द समवाय का समावेश हो जाता है। जितने भी प्रकार के शब्द प्राप्त हैं, उनकी निष्पत्ति में इन पाँचों भेदों का या तन्मूलक विधा का मुख्य आधार है। इनका विश्लेषण इस प्रकार है - १. नामिक - संसार में जितने भी पदार्थ हैं, उनकी पहचान के लिए विभिन्न नाम दिए गए हैं। वे नाम जाति, व्यक्ति, भाव इत्यादि के आधार पर भिन्न-भिन्न हैं। व्याकरण में “जातिवाचक, व्यक्तिवाचक, भाववाचक संज्ञाओं के रूप में जो भेद किया गया है, उसका यही तात्पर्य है। (पाठ में) सूत्र के उदाहरण में अश्व शब्द का नामिक के रूप में उल्लेख है। 'अश्व' चतुष्पद जन्तुविशेष का नाम है। यह जातिवाचक संज्ञा है। इसी प्रकार व्यक्ति के नाम भी नामिक में आते हैं। वचन, लिङ्ग, कारक आदि के भेद से इनके विविध रूप बनते हैं। __ णामियं १ णेवाइयं २ अक्खाइयं ३ ओवसग्गियं ४ मिस्सं ५। 'आस' त्ति णामियं, 'खलु' त्ति णेवाइयं 'धावई' त्ति अक्खाइयं परि'त्ति ओवसग्गियं, 'संजय' त्ति मिस्सं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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