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अनुयोगद्वार सूत्र
इस प्रकार नैगम व्यवहार सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्यों के संबंध में प्रश्न है - इसका उत्तर इस प्रकार है___एक द्रव्य की अपेक्षा संख्यात भाग में नहीं होता, असंख्यात भाग में होता है, संख्यात भागों में नहीं होते, असंख्यात भागों में नहीं होते तथा समस्त लोक में (भी) नहीं होते (किन्तु) नाना द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समस्त लोक में होते हैं। इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्यों के संदर्भ में भी कथनीय है।
स्पर्शना विवेचन णेगमववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स किं संखिज्जइभागं फुसंति? असंखिजइभागं फुसंति? संखेजे भागे फुसंति? असंखेजे भागे फुसंति? सव्वलोगं फुसंति?
एगं दव्वं पडुच्च संखिज्जइभागं वा फुसइ, असंखिजइभागं वा फुसइ, संखेजे भागे वा फुसइ, असंखेजे भागे वा फुसइ, देसूणं वा लोगं फुसइ। णाणादव्वाई पडुच्च णियमा सव्वलोयं फुसंति। अणाणुपुव्वीदव्वाइं अवत्तव्वयदव्वाइं च जहा खेत्तं णवरं फुसणा भाणियव्वा।
भावार्थ - नैगम - व्यवहार सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्येय भाग का, असंख्येय भाग का, संख्येय भागों का, असंख्येय भागों का (या) सर्वलोक का स्पर्श करते हैं? ___एक द्रव्य की अपेक्षा से संख्येय भाग का अथवा असंख्येय भाग का अथवा संख्येय भागों का अथवा असंख्येय भागों का अथवा देश कम लोक का स्पर्श करते हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा से वे नियमतः समस्त लोक का स्पर्श करते हैं।
अनानुपूर्वी द्रव्य एवं अवक्तव्य द्रव्य की स्पर्शना का विवेचन क्षेत्रानुपूर्वी के अनुरूप पूर्ववत् • ज्ञातव्य है।
णेगमववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति?
एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं असंखेनं कालं। णाणादव्वाई पडुच्च णियमा सव्वद्धा। एवं दुण्णि वि।
भावार्थ - नैगम एवं व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य काल की अपेक्षा से कितनी समयावधि पर्यन्त रहते हैं?
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