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________________ अत्थि अवत्तव्वए ३ एवं दव्वाणुपुव्वीगमेणं खेत्ताणुपुव्वीए वि ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव सेत्तं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया । भावार्थ - नैगम व्यवहार सम्मत भंग समुत्कीर्तनता का कैसा स्वरूप है ? नैगम व्यवहार सम्मत भंग समुत्कीर्तनता का निरूपण इस प्रकार है- आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी, अवक्तव्य इत्यादि द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की ज्यों क्षेत्रानुपूर्वी के भी वैसे ही छब्बीस भंग कथनीय हैं यावत् इस प्रकार नैगम व्यवहार सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप ज्ञातव्य है । " एयाए णं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं ? भंगोपदर्शनता एयाए णं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ । भावार्थ - इस नैगम - व्यवहार सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है? नैगम - व्यवहार-सम्मत भंगसमुत्कीर्तनता द्वारा नैगम व्यवहार सम्मत भंगोपदर्शनता की जाती है। भंगोपदर्शनता से किं तं गमववहाराणं भंगोवदंसणया ? णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया - तिपएसोगाढे आणुपुव्वी १ एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी २ दुपएसोगाढे अवत्तव्वए ३ तिपएसोगाढा आणुपुव्वीओ ४ एगपएसोगाढा अणाणुपुव्वीओ ५ दुपएसोगाढा अवत्तव्वयाई ६ अहवा तिपएसोगाढे य एगपएसोगाढे य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य एवं तहा चेव दव्वाणुपुव्वीगमेणं छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव सेत्तं णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया । Jain Education International १०७ भावार्थ - नैगम व्यवहार सम्मत भंगोपदर्शनता का कैसा स्वरूप है ? नैगम - व्यवहार सम्मत भंगोपदर्शनता - १. त्रिप्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी २. एकप्रदेशावगाह युक्त आनुपूर्वी ३. द्विप्रदेशावगाह युक्त अवक्तव्य ४. त्रिप्रदेशावगाहयुक्त आनुपूर्वियाँ ५. एक प्रदेशावगाह युक्त अनानुपूर्वियाँ ६. द्विप्रदेशावगाह युक्त अवक्तव्य ( बहुवचन) अथवा त्रिप्रदेशावगाढ़, एक प्रदेशावगाढ, आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी इसी प्रकार द्रव्यानुपूर्वी की भांति छब्बीस भंग ( यहाँ भी ) भणनीय - कथनीय या आख्येय हैं यावत् नैगम - व्यवहार सम्मत भंगोपदर्शनता का ऐसा स्वरूप है। - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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