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________________ अनुगम निरूपण - क्षेत्र प्रतिपादन ६७ गाथा - १. सत्पदप्ररूपणा २. द्रव्य प्रमाण ३. क्षेत्र ४. स्पर्शना ५. काल ६. अन्तर ७. भाग तथा ८ भाव। इसमें अल्प-बहुत्व नहीं होता। १. सत्पदप्ररूपणा संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं किं अत्थि णत्थि? णियमा अत्थि। एवं दोण्णि वि। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं अथवा नहीं हैं? निश्चित रूपेण वे हैं - उनका अस्तित्व है। इसी प्रकार अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य द्रव्य - इन दोनों के साथ भी ऐसा ही है। अर्थात् इनका अस्तित्व है। २. द्रव्य प्रमाण प्रतिपादन . संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं किं संखिजाइं? असंखिजाइं? अणंताई? णो संखिजाइं, णो असंखिजाई, णो अणंताई, णियमा एगो रासी। एवं दोण्णि वि। शब्दार्थ - रासी - राशि। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्येय हैं? असंख्येय हैं? (या) अनंत हैं? (संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य) संख्येय नहीं हैं, न (वे)असंख्येय, (या) अनंत ही हैं। (वरन्) नियमतः एक राशि रूप हैं। इसी तरह दोनों अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य द्रव्य भी हैं। विवेचन - संग्रहनय का विषय सामान्य है। यद्यपि आनुपूर्वी द्रव्य अनेक होते हैं किन्तु उनमें आनुपूर्वित्व रूप सामान्य धर्म एक है। अतएव संग्रहनय के अनुसार वे संख्यात, असंख्यात या अनंत की कोटि में न लिए जाकर एक राशि रूप लिए गए हैं। ३. क्षेत्र प्रतिपादन संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स कइभागे होजा? किं संखिज्जइभागे होजा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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