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अनुगम-निरूपण - क्षेत्र विवेचन
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(८४)
३. क्षेत्र विवेचन णेगमववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स किं संखिजइभागे होजा? असंखिजइभागे होजा? संखेजेसु भागेसु होजा? असंखेजेसु भागेसु होजा? सव्वलोए होजा?
एगं दव्वं पडुच्च संखिजइभागे वा होजा, असंखिजइभागे वा होजा, संखेजेसु भागेसु वा होजा, असंखेजेसु भागेसु वा होजा, सव्वलोए वा होजा। णाणादव्वाइं पडुच्च णियमा सव्वलोए होजा।
शब्दार्थ - लोगस्स - लोकस्य - लोक का, होजा - होते हैं - होने चाहिए, सव्वलोएसमस्त लोक में, पहुच्च - प्रतीति से, अपेक्षा से, भागेसु - भागों में, णाणादव्वाइं - विविध द्रव्य।
भावार्थ - नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या (क्षेत्र की अपेक्षा से) लोक के संख्येय भाग में होते हैं? क्या असंख्येय भाग में होते हैं (अथवा.) संख्येय भागों में होते हैं (या) असंख्येय भागों में होते हैं (या) समस्त लोक में होते हैं? ___एक द्रव्य (कोई आनुपूर्वी) की अपेक्षा से कोई लोक के संख्येय भाग में अवगाह लिए होता है अथवा. कोई लोक के असंख्येय भाग में व्याप्त रहता है अथवा कोई संख्येय भागों में रहता है अथवा कोई असंख्येय भागों में रहता है अथवा कोई समस्त लोक में रहता है। किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा से वे समग्र लोक में अवगाह किए होते हैं।
णेगमववहाराणं अणाणुपुव्वीदव्वाइं किं लोयस्स संखिजइभागे होजा जाव सव्वलोए होजा?
. एगं दव्वं पडुच्च णो संखिज्जइभागे होजा, असंखिजइभागे होजा, णो संखेजेसु भागेसु होजा, णो असंखेजेसु भागेसु होजा, णो सव्वलोए होजा। णाणादव्वाई पडुच्च णियमा सव्वलोए होजा। एवं अवत्तव्वगदव्वाइं भाणियव्वाइं।
भावार्थ - नैगम - व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्येय भाग में रहते हैं यावत् समस्त लोक में होते हैं?
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