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________________ ७८ अनुयोगद्वार सूत्र (७८) एयाए णं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं णेगमववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ। . शब्दार्थ - एयाए - इसके द्वारा, भंगोवदंसणया - भंगोपदर्शनता। भावार्थ - इस नैगम एवं व्यवहारनय सम्मत भंगनिरूपण का क्या प्रयोजन है? इस नैगम तथा व्यवहारनय सम्मत भंगनिरूपण का प्रयोजन भंगोपदर्शन - पृथक्-पृथक् रूप में भंगों का प्रतिपादन करना है। __ विवेचन - इस सूत्र में भंगों के संदर्भ में समुत्कीर्तन एवं उपदर्शन - दो शब्दों का प्रयोग हुआ है। साधारणतया देखने पर दोनों समान जैसे प्रतीत होते हैं किन्तु सूक्ष्म आशय की गवेषणा करने पर दोनों में अर्थभेद है। ___ समुत्कीर्तन में सम्+उत्+कीर्तन शब्द हैं। सम् का तात्पर्य सम्यक्, उत् का अर्थ - विशद् रूप में तथा कीर्तन का अर्थ निरूपण है। अर्थात् समुत्कीर्तन में भंगों के नाम और उनके प्रकार बतलाए जाते हैं। ___ 'उपदर्शन' शब्द 'उप' उपसर्ग एवं 'दर्शन' से मिलकर बना है। 'उप' सामीप्य या नैकट्य बोधक है। अतएव जो निकटतम या अति समीप त्र्यणुक आदि वाच्यार्थ हैं, उनका उपदर्शन में प्रतिपादन किया जाता है। (७६) नैगम-व्यवहारनय सम्मत भंगोपदर्शनता से किं तं णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया? णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया-तिपएसिए आणुपुव्वी १ परमाणुपोग्गले अणाणुपुव्वी २ दुपएसिए अवत्तव्वए ३ अहवा तिपएसिया आणुपुव्वीओ ४ परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ ५ दुपएसिया अवत्तव्वयाई ६। अहवा तिपएसिए य परमाणुपुग्गले य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य चउभंगो ४। अहवा तिपएसिए य दुपएसिए य आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य चउभंगो ८। अहवा परमाणुपोग्गले य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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