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समवायांग
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पैदा होती है। कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो ग्यारह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥। ११ ॥
विवेचन - साधुओं की उपासना - सेवा करने वाले को उपासक या श्रमणोपासक (श्रावक ) कहते हैं। बारह अणुव्रतों का पालन करते हुए श्रावक जब धार्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ने की इच्छा करते हैं तब घर के कामों से निवृत्त होकर इन ग्यारह पडिमाओं (प्रतिज्ञा - नियम विशेष) को धारण करते हैं जिनका वर्णन ऊपर दिया गया है। दशाश्रुतस्कन्ध की छठी दशा में इनका विस्तृत वर्णन दिया गया है जिसका हिन्दी अनुवाद जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग ४ में दिया गया है। इन ग्यारह पडिमाओं का आचरण आनन्द, कामदेव आदि १० श्रावकों ने किया है जिसका वर्णन उपासकदशाङ्ग सूत्र में किया गया है। .
प्राचीन हस्त लिखित प्रतियों में ऐसा वर्णन मिलता है कि पहली पडिमा में एक महीने तक एकान्तर उपवास किया जाता है। दूसरी पडिमा में दो महीने तक बेले बेले, तीसरी पडिमा में तीन महीने तक तेले-तेले तपश्चर्या की जाती है। इस प्रकार यावत् ग्यारहवीं पडिमा में ग्यारह महीने तक ग्यारह ग्यारह की तपश्चर्या की जाती है। आनन्द श्रावक का वर्णन पढ़ने से भी इस बात की पुष्टि हो जाती है कि उन्होंने पडिमाओं में इसी प्रकार की तपश्चर्या की थी । क्योंकि जब गौतम स्वामी आनन्द को दर्शन देने पधारे थे तब आनन्द श्रावक के शरीर का वर्णन काकन्दी नगरी के धन्ना अनगार की तरह किया है। इस प्रकार का जर्जर शरीर तपश्चर्या से ही हो सकता है इसीलिये वे संथारे से उठ नहीं सके। विनति करने पर गौतम स्वामी आनन्द श्रावक के नजदीक पहुँचे तब आनन्द श्रावक ने अपना मस्तक उनके चरणों में लगा कर वन्दन नमस्कार किया। इन उद्धरणों से यह स्पष्ट होता है कि श्रावक की पडिमाओं में श्रावक इतना उत्कृष्ट तप करता है।
श्रमणोपासक (श्रावक) की पडिमाओं को देखने से अल्प पाप और महा पाप की व्याख्या का स्पष्टीकरण हो जाता है। वह इस प्रकार है - एक सरीखी परिस्थिति, परिणामों की विचार धारा, तत्त्वज्ञान और विवेक ये सब बातें जिस व्यक्ति में हो वह यदि कोई आरम्भ आदि का पाप काम स्वयं करे अथवा इन सभी गुणों से युक्त पुरुष से वह आरम्भ आदि पाप कार्य करावें अथवा. इन सभी गुणों से युक्त किसी व्यक्ति ने आरम्भादि पाप कार्य किया है। उसके कार्य की अनुमोदना करे तो स्वयं करने वाले को पाप अधिक लगता है। कराने में उससे कम और अनुमोदना में उससे भी कम पाप लगता है। क्योंकि - आठवीं पडिमा में श्रावक स्वयं आरम्भ करने का त्याग करता है। नौंवीं पडिमा में दूसरों से आरम्भ करवाने का
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