SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायांग सूत्र कहते हैं। यहाँ पांच समिति और तीन गुप्ति इन आठ को प्रवचन माता कहा है। इसका अभिप्राय यह है कि - सारी द्वादशाङ्ग वाणी का सार इन आठ प्रवचन माताओं में समाविष्ट हो जाता है। ३८ चैत्य शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। पूज्य श्री जयमल जी म. सा. ने चैत्य शब्द के ११२ अर्थ बतलाये हैं। जो कि मधुकरजी म. सा. द्वारा सम्पादित उववाई सूत्र के प्रारम्भ में दिये गये हैं। यहाँ पर वाणव्यन्तर देवों की सुधर्मा सभा के आगे मणि पीठिका के ऊपर जो वृक्ष हैं, उनको चैत्य वृक्ष कहा है। वे पृथ्विकाय रूप रत्नों से बने हुए हैं और शाश्वत हैं। उत्तर कुरु क्षेत्र में जम्बू वृक्ष पृथ्वी परिणाम रूप सर्व रत्नमय है। इसका नाम सुदर्शना है। इसी प्रकार देवकुरु क्षेत्र में गरुड़ जातीय वेणु देव सुवर्णकुमार भवनपति नामक देव का निवास स्थान रूप कूट शाल्मली वृक्ष है। पुरुषों में आदेय नाम कर्म का विशेष उदय वाले पुरुषादानीय तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ के आठ गणधर थे और आठ ही गण थे । ठाणाङ्ग सूत्र के आठवे ठाणे में भी ऐसा ही बतलाया गया है । किन्तु आवश्यक सूत्र में दस गणधर बतलाये हैं तथा कहा है कि - दो गणधरों का आयुष्य अल्प था । इसलिये उनकी गिनती न करने से आठ गणधर ही बतलाये हैं । किन्तु आवश्यक सूत्र का यह कथन युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता है। इसलिये समवायाङ्ग सूत्र और ठाणाङ्ग सूत्र के अनुसार आठ गणधर मानना ही उचित एवं प्रामाणिक है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में २८ नक्षत्र बतलाये गये हैं । उनमें से मृगशिर आदि छह नक्षत्र दक्षिण की तरफ से चन्द्रमा के साथ योग जोड़ते हैं और अभिजित् आदि बारह नक्षत्र उत्तर की तरफ से योग जोड़ते हैं । कृत्तिका आदि सात नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्द योग जोड़ते हैं अर्थात् कभी ऊपर से और कभी नीचे से योग जोड़ते हैं, एक दिशा निश्चित नहीं है। पूर्वाषाठा उत्तराषाढा और जेष्ठा इन नक्षत्रों को चीर कर बीच से चन्द्र निकल जाता है, इसको भी प्रमर्द योग कहते हैं। कुल समुद्घात सात हैं । केवली समुद्घात सभी केवली भगवान् नहीं करते हैं किन्तु कोई कोई केवली भगवान् करते हैं । छद्मस्थ जो कार्य करता है वह अन्तर्मुहूर्त्त से पहले नहीं करता है अर्थात् उसको कार्य करने में अन्तर्मुहूर्त्त का समय लगता ही है किन्तु केवली भगवान् अनन्त शक्ति सम्पन्न होते हैं । इसीलिये आठ समय में ही केवली समुद्घात कर लेते हैं। किसी किसी की मान्यता है कि केवली समुद्घात नहीं करते बल्कि हो जाता है । परन्तु यह मान्यता आगम के अनुसार नहीं है। क्योंकि आगम के मूल पाठ में कहा है यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy