SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ समवायांग सूत्र द्रव्य लेश्या कर्म वर्गणा रूप है। वह रूपी अष्टस्पर्शी है। योगान्तर्गत कृष्णादि द्रव्य लेश्या के संयोग से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष भाव लेश्या है। द्रव्य लेश्या, भाव लेश्या में परिणत हो जाती है। जैसे वैडूर्य मणि में लाल धागा पिरोने से वह अपने नील वर्ण को रखते हुए धागे की लाल छाया को धारण करती है। किन्तु लेश्या का यह परिणाम केवल मनुष्य और तिर्यञ्च की लेश्या के सम्बन्ध में ही है। देव और नैरयिक में द्रव्य लेश्या अवस्थित होती है। वह बदलती नहीं है। भाव लेश्या बदलती रहती है। लेश्या के छह भेद हैं इनमें से कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या ये तीन लेश्याएँ पाप का कारण होने से अधर्म लेश्याएँ हैं । इनसे जीव दुर्गति में उत्पन्न होता है। तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या ये तीन धर्म लेश्याएं हैं। इन से जीव सुगति में उत्पन्न होता है। ____ जिस लेश्या को लिए हुए जीव मरता है, उसी लेश्या को लेकर परभव में उत्पन्न होता है। लेश्या के प्रथम एवं चरम समय में जीव परभव में नहीं जाता किन्तु अन्तर्मुहूर्त बीतने पर और अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर ही परभव के लिये जाता है। मरते समय लेश्या का अन्तर्मुहुर्त बाकी रहता है। इसलिये परभव में भी जीव उसी लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है। . तप - शरीर और कर्मों को तपाना तप है। जैसे अग्नि में तपा हुआ सोना निर्मल होकर शुद्ध हो जाता है। उसी प्रकार तप रूपी अग्नि में तपा हुआ आत्मा कर्ममल से रहित होकर शुद्ध स्वरूप हो जाता है। तप के दो भेद हैं - बाह्य तप और आभ्यन्तर तप। बाह्य शरीर से सम्बन्ध रखने वाले तप को बाह्य तप कहते हैं। इसके दो भेद हैं - इत्वर और यावत्कथिक। अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थङ्कर के शासन में एक वर्ष, मध्य के बाईस तीर्थङ्करों के शासन में आठ मास और अन्तिम तीर्थङ्कर के शासन में ६ मास का उत्कृष्ट इत्वर तप होता है। जिसका जितना आहार है उससे कम आहार करना ऊनोदरी तप है। पुरुष का ३२ कवल, स्त्री का २८ कवल और नपुंसक का २४ कवल परिमाण आहार पूर्ण आहार होता है। जिस तप का सम्बन्ध आत्मा के भावों से हो उसे आभ्यन्तर तप कहते हैं। __प्रश्न - कर्मों के बन्ध से आत्मा मलिन होती है। इसलिये आत्मा को ही तपाना चाहिए शरीर को तपाने से क्या लाभ? उत्तर - प्रश्न उचित है। समाधान यह है कि मक्खन में छाछ भी मिली हुई होती है। उससे शुद्ध घी बनाना है तो केवल मक्खन को ही नहीं तपाया जाता है किन्तु जिस बर्तन में मक्खन रखा हुआ है उस बर्तन सहित मक्खन को तपाया जाता है तो ही शुद्ध घी मिलता है। इसी प्रकार संसारी आत्मा शरीर में रहा हुआ है इसलिये उस आत्मा को निर्मल बनाने के लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy