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________________ बलदेव और वासुदेवों के पूर्वभव के नाम ४२९ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww और भोग सामग्री को छोड़ कर दीक्षा अङ्गीकार करते हैं। संयम का पालन करके सर्व कर्मों का क्षय कर मुक्ति में जाते हैं। यदि कुछ कर्म शेष रह जाय तो देवलोक में भी जाते हैं। इस अवसर्पिणी काल के बारह चक्रवर्तियों में से आठवां सुभूम नामक चक्रवर्ती और बारहवां ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती इन दोनों ने पूर्व भव में नियाणा (निदान) किया था इसलिये इस भव में वे दीक्षा नहीं ले सके । अतः वे दोनों मर कर सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकेन्द्र में तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक हुए हैं। शेष दस चक्रवर्ती सर्व कर्म क्षय करके मोक्ष प्राप्त हो गये हैं। बलदेव निश्चित रूप से दीक्षा लेते ही हैं। वे दीक्षा लेकर मोक्ष में अथवा देवलोक में जाते हैं। वासुदेव पूर्व भव में नियाणा (निदान) किये हुए ही होते हैं। इसलिये वे राजऋद्धि का त्याग नहीं कर सकते हैं। वे भोगासक्त बने रहते हैं इसलिए वे मर कर नरक में ही जाते हैं। ... बलदेव और वासुदेवों के पूर्वभव के नाम एएसिं णं णवण्हें बलदेव वासुदेवाणं पुव्वभविया णव णव णामधेजा होत्था, तंजहा विस्सभई पव्ययए, धणदत्त समुहदत्त इसिवाले । . पियमित्त ललियमित्ते, पुणव्वसू गंगदत्ते य॥ ५८॥ एयाई णामाई, पुव्वभवे आसी वासुदेवाणं । - एत्तो बलदेवाणं, जहक्कम कित्तइस्सामि ॥ ५९॥ विसणंदी य सुबंध, सागरदत्ते असोगललिए य।। वाराह धम्म सेणे, अपराइय रायललिए य॥ ६०॥ - भावार्थ - इन नौ बलदेव वासुदेवों के पूर्वभव के नौ नौ नाम थे, वे इस प्रकार थे - १. विश्वभूति, २. पर्वतक, ३. धनदत्त, ४. समुद्रदत्त, ५. ऋषिपाल, ६. प्रियमित्र, ७. ललितमित्र, ८. पुनर्वसु, ९. गंगदत्त । वासुदेवों के ये नाम पूर्वभव में थे । इसके आगे बलदेवों के पूर्वभव के नाम यथाक्रम से कहे जायेंगे । जैसे कि - १. विश्वनन्दी, २. सुबन्धु, ३. सागरदत्त, ४. अशोक, ५. ललित, ६. वराह, ७. धर्मसेन, ८. अपराजित, ९. राजललित । ये बलदेवों के पूर्वभव के नाम थे ।। ५८-६०॥ . विवेचन - कृष्ण वासुदेव के पूर्वभव के जीव का नाम गंगदत्त लिखा है। भगवती सूत्र शतक १६ उद्देशक ५ में जिस गंगदत्त मुनि का वर्णन है उन्होंने बीसवें तीर्थङ्कर श्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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