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समवायांग सूत्र
भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में सात कुलकर हुए थे उनके नाम इस प्रकार हैं १. विमलवाहन, २. चक्षुष्मान् ३. यशस्वान्, ४. अभिचन्द्र, ५. प्रसेनजित, ६. मरुदेव और ७. नाभि ।
कुलकरों की भार्याएँ
एएसि णं सत्तहं कुलगराणं सत्त भारिया होत्था, तंजहा चंदजसा चंदकंता, सुरूव पडिरूव चक्खुकंता य ।
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सिरिकंता मरुदेवी, कुलगर पत्तीण णामाई ॥ ४ ॥ कठिन शब्दार्थ - इमीसे ओसप्पिणी - इस अवसर्पिणी काल के ।
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भावार्थ - इन सात कुलकरों की सात भार्याएं थी। उनके नाम इस प्रकार हैं. १. चन्द्रयशा, २. चन्द्रकान्ता, ३. सुरूपा, ४. प्रतिरूपा, ५. चक्षुष्कान्ता, ६. श्रीकान्ता और ७. मरुदेवी, ये कुलकरों की भार्याओं के नाम हैं।
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विवेचन अपने अपने समय के मनुष्यों के लिए जो व्यक्ति मर्यादा बाँधते हैं, उन्हें कुलकर कहते हैं। ये ही सात कुलकर सात मनु भी कहलाते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे आरे के अन्त में सात कुलकर हुए हैं। कहा जाता है, उस समय १० प्रकार के युगलिक वृक्षों में से काल दोष के कारण कुछ वृक्ष कम हो गए । यह देखकर युगलिए अपने अपने वृक्षों पर ममत्व करने लगे। यदि कोइ युगलिया दूसरे के वृक्ष से फल ले लेता तो झगड़ा खड़ा हो जाता। इस तरह कई जगह झगड़े खड़े होने पर युगलियों ने सोचा कोई पुरुष ऐसा होना चाहिए जो सब के वृक्षों की मर्यादा बांध दे । वे किसी ऐसे व्यक्ति को खोज ही रहे थे कि - उनमें से एक युगल स्त्री पुरुष को वन के सफेद हाथी ने अपने आप सूंड से उठा कर अपने ऊपर बैठा लिया। दूसरे युगलियों ने समझा यही व्यक्ति हम लोगों में श्रेष्ठ है और न्याय करने लायक है। सब ने उसको अपना राजा माना तथा उसके द्वारा बांधी हुई मर्यादा का पालन करने लगे । ऐसी कथा प्रचलित है।
पहले कुलकर का नाम विमलवाहन है। बाकी के छह इसी कुलकर के वंश में क्रम से
हुए हैं।
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सातवें कुलकर नाभि के पुत्र भगवान् ऋषभदेव हुए । विमलवाहन कुलकर के समय सात ही प्रकार के वृक्ष थे। उस समय त्रुटितांग, दीप और ज्योति नाम के वृक्ष नहीं थे। कुलकरों की भार्याओं में से मरुदेवी ऋषभदेव की माता थी और उसी भव में सिद्ध हुई है।
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