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________________ ३७४ समवायांग सूत्र हैं। पांचवा, छठा, सातवां, आठवाँ देवलोक एक घड़े के ऊपर दूसरे घड़े के समान आये हुए हैं। पाचंवें ब्रह्मलोक में छह प्रस्तट, छठे लांतक में पांच, सातवें शुक्र में चार, आठवें सहस्रार में चार, नवमें दसवें में चार, ग्यारहवें बारहवें में चार, नव ग्रैवेयेक में ९ और पांच अनुत्तर विमान का एक । इस प्रकार ये ६२ प्रस्तट (पाथड़ा) वैमानिक देवों के हैं। नगननननननन प्रश्न - हे भगवन् ! ये विमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित (टिके हुए) हैं ? उत्तर - हे गौतम! पहला और दूसरा देवलोक घनोदधि पर, तीसरा चौथा पांचवाँ घनवायु पर । छठा सातवाँ आठवां उभय प्रतिष्ठित (घनोदधि और घनवाय) हैं। उससे ऊपर के सब विमान आकाश प्रतिष्ठित हैं। प्रश्न - हे भगवन्! इन विमानों के कितने विभाग हैं ? उत्तर - हे गौतम! तीन विभाग हैं यथा अर्थात् तिरछा लोक में आने के लिये सवारी के पालक, पुष्पक आदि । .... प्रश्न - हे भगवन्! इन विमानों का कैसा संस्थान है ? उत्तर - हे गौतम! जो विमान आवलिका प्रविष्ट हैं उनका संस्थान तीन प्रकार का है। १. वृत्त (गोल), त्र्यत्र (त्रिकोण), चतुरस्र ( चौकोण) । आवलिका बाह्य अर्थात् पुष्पावकीर्ण विमानों का संस्थान नाना प्रकार का है। यथा - Jain Education International अवस्थित ( शाश्वत) वैक्रियकृत और परियान लिये बनाये जाने वाले यान विमान । यथा प्रश्न - हे भगवन् ! विमानों की विमान पृथ्वी का क्या परिमाण है ? उत्तर - हे गौतम! सौधर्म और ईशान कल्प के विमान पृथ्वी की मोटाई बाहल्ल्य २७०० योजन तीसरे चौथे में २६०० योजन, पांचवें छठे में २५०० योजन, सातवें आठवें में २४०० योजन, नववें, दसवें, ग्यारहवें, बारहवें में २३०० योजन, नव ग्रैवेयक में २२०० योजन, पांच अनुत्तर विमानों में २१०० योजन की विमान पृथ्वी की मोटाई बाहल्ल्य है। प्रश्न - हे भगवन्! सौधर्मादि देवलोकों के विमानों की ऊँचाई कितनी है ? उत्तर - हे गौतम! पहले दूसरे देवलोक में ५०० योजन के विमान ऊँचे हैं। तीसरे चौथे में छह सौ, पांचवें छठे में ७००, सातवें आठवें में ८००, नववें, दसवें, ग्यारहवें, बारहवें में नव ग्रैवेयक में १००० और पांच अनुत्तर विमानों में ११०० योजन के ऊंचे विमान हैं। प्रश्न - हे भगवन्! इन विमानों की लम्बाई चौड़ाई कितनी है ? ९००, उत्तर - विमान दो प्रकार के हैं। संख्यात विस्तृत और असंख्यात विस्तृत । संख्यात योजन के विस्तृत विमान छोटे से छोटा जम्बूद्वीप प्रमाण होता है। बड़े तो हजारों योजन लम्बे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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