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________________ .३७२ समवायांग सूत्र सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवइया विमाणावासा पण्णत्ता? गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। एवं ईसाणाइसु अट्ठावीसं, बारस, अट्ठ, चत्तारि एयाइं सयसहस्साइं, पण्णासं चत्तालीसं छ एयाइं सहस्साइं आणयपाणए चत्तारि आरणच्चुए तिण्णि एयाणि सयाणि, एवं गाहाहिं भाणियव्वं ॥ कठिन शब्दार्थ - अच्चिमालिप्पभा - अर्चिमालि-आदित्य अर्थात् सूर्य के समान प्रभा वाले, भासरासिवण्णाभा - भासराशिवर्णाभा-प्रकाशपुंज के वर्ण की शोभा वाले। - भावार्थ - हे भगवन्! वैमानिक देवों के कितने आवास कहे गये हैं ? हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत समरमणीय भूमि भाग से ऊपर चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा विमानों को उल्लंघन कर के बहुत योजन, बहुत सौ योजन, बहुत हजार योजन, बहुत लाख योजन, बहुत करोड़ योजन, बहुत करोड़ा करोड़ (कोटाकोटि) योजन, असंख्यात कोटाकोटि योजन ऊंचा दूर जाने पर वैमानिक देवों के सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आणत, प्राणत, आरण, अच्युत, इन बारह देवलोकों में और नवग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमानों में ८४९७०२३ विमान हैं, ऐसा कहा गया है। वे विमान सूर्य के समान प्रभा वाले, सूर्य के समान वर्ण वाले, स्वाभाविक रज से रहित, बाहर से आई हुई रज से रहित, निर्मल, अन्धकार रहित, विशुद्ध, सब रत्नमय, आकाश के समान स्वच्छ, श्लक्षण यानी सूक्ष्म पुद्गलों से बने हुए, घृष्ट यानी पाषाण प्रतिमा की तरह घिसे हुए, मृष्ट यानी पाषाण प्रतिमा की तरह घिस कर चिकने बनाये हुए, पङ्क रहित, आवरण रहित, दीप्तिमान, प्रभा सहित, श्री शोभा सहित अथवा मरिचि यानी किरणों युक्त, सउद्योत-प्रकाश युक्त, प्रासादीय यानी मन को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय-देखने योग्य, अभिरूप - कमनीय और प्रतिरूप-प्रत्येक दर्शक के मन को लुभाने वाले हैं। - हे भगवन् ! सौधर्म देवलोक में कितने विमान कहे गये हैं ? हे गौतम! बत्तीस लाख विमान कहे गये हैं। इसी तरह ईशान आदि देवलोकों में विमानों की संख्या इस प्रकार गाथाओं द्वारा कह देनी चाहिए । जैसे कि ईशान देवलोक में २८ लाख, सनत्कुमार में १२ लाख, माहेन्द्र में ८ लाख, ब्रह्मलोक में ४ लाख, लान्तक में ५० हजार, महाशुक्र में ४० हजार, सहस्रार में ६ हजार, आणत प्राणत में ४००, आरण अच्युत में ३०० विमान हैं। नवग्रैवेयक की पहली त्रिक में १११, दूसरी त्रिक में १०७, तीसरी त्रिक में १०० और पांच अनुत्तर विमानों में ५ विमान हैं। ये सब मिला कर वैमानिक देवों के ८४९७०२३ विमान हैं। विवेचन - विमानों में रहने वाले देवों को 'वैमानिक देव' कहते हैं। इनके दो भेद हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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