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________________ ३७० समवायांग सूत्र ७९० योजन ऊंचा जाने पर ११० योजन की मोटाई में ज्योतिषियों का विषय है। यहाँ पर ज्योतिषी देवों के असंख्याता ज्योतिषी विमान कहे गये हैं अर्थात् समभूमि से ७९० योजन ऊपर जाने पर तारामण्डल है। तारामण्डल से १० योजन ऊपर सूर्य है। सूर्य से ८० योजन ऊपर चन्द्रमा है। चन्द्रमा के ४ योजन ऊपर नक्षत्र है। उससे ४ योजन ऊपर बुध ग्रह है, उससे ४ योजन ऊपर शुक्र ग्रह है। उससे ३ योजन ऊपर बृहस्पति ग्रह है, उससे ३ योजन ऊपर मंगल ग्रह है, उससे ३ योजन ऊपर शनैश्चर ग्रह है। ज्योतिषी देवों के विमान चारों दिशाओं में फैली हुई कान्ति से उज्ज्वल हैं। अनेक प्रकार की चन्द्रकान्तादि मणियाँ और कर्केतनकादि रत्नों से चित्रित हैं, वायु से प्रेरित विजय वैजयन्ती पताकाओं से तथा छत्रातिछत्रों से सुशोभित हैं, तुङ्ग अर्थात् बहुत ऊंचे हैं, उनके शिखर आकाशतल को स्पर्श करने वाले हैं, विमानों की दीवारों में लगी हुई जालियों में रत्न जड़े हुए हैं, पंजर यानी डिब्बे में से निकाले हुए के समान चमकदार हैं, उनके सोने के शिखरों पर मणियाँ जड़ी हुई है। विकसित पुण्डरीक कमल के समान रत्नों के तिलक और अर्द्ध चन्द्रादि छापों से चित्रित हैं, अन्दर और बाहर चिकने हैं, वहाँ सोने की बालुका बिछी हुई है। सुखदायक स्पर्श वाले हैं, शोभन आकार वाले हैं, मन को हरण करने वाले हैं दर्शनीय-देखने योग्य, अभिरूप यानी कमनीय और प्रतिरूप यानी प्रत्येक दर्शक के मन को लुभाने वाले हैं। विवेचन - ज्योतिषी देवों के वर्णन में सर्व प्रथम 'बहुसमरमणीय भूमि भाग' शब्द आया है। उसका अर्थ यह है कि - मेरुपर्वत जमीन पर दस हजार योजन का जाड़ा (मोटा) है। उसके ठीक बीचोंबीच में आठ रुचक प्रदेश हैं। उनको बहु समरमणीय भूमि भाग कहा गया है। उस बहु समरमणीय भूमिभाग से ७९० योजन पर तारामण्डल है। वह तारा मण्डल ११० योजन में विस्तृत है। उसमें सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र आदि ज्योतिषी देवों का वर्णन है। जिनका संक्षिप्त वर्णन मूल पाठानुसार भावार्थ में कर दिया गया है। विशेष विवरण जीवाभिगम सूत्र के 'ज्योतिष्क' उद्देशक से जानना चाहिए। __ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा विमान इन सब का आकार आधा कविठ के आकार है। चन्द्र का विमान ५६ योजन लम्बा चौड़ा है। सूर्य का विमान ४. योजन, ग्रह का विमान आधा योजन, नक्षत्र का विमान एक कोस और तारा का विमान आधा कोस का लम्बा चौड़ा है। सबकी परिधि अपनी लम्बाई चौड़ाई से तिगुनी से कुछ अधिक है। चन्द्र विमान और सूर्य विमान को १६००० देव, ग्रह विमान को ८००० देव, नक्षत्र विमान को ४००० देव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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