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समवायांग सूत्र
हैं। उसी प्रकार पूर्वो में "वस्तु" शब्द का प्रयोग किया गया है। तथा अध्ययन, शतक आदि के अन्तर्गत उद्देशक कहे गये हैं। इसी प्रकार यहाँ वस्तु के अन्तर्गत चूलिका वस्तु कही गयी है। पहले उत्पाद पूर्व की चार, दूसरे अग्रायणीय पूर्व की १२, तीसरे वीर्य प्रवाद पूर्व की ८ और चौथे अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की १० चूलिका वस्तुएँ कही गयी हैं। शेष १० पूर्वो की चूलिका वस्तुएँ नहीं हैं। सब चूलिका वस्तुएं ३४ कही गयी हैं।
पूर्वगत सब वस्तुओं की और चूलिका वस्तुओं की संख्या सरलता से स्मरण रखने के लिये तीन संगृहणी गाथाएँ मूल में कही गयी है। ...
से किं तं अणुओगे ? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा. - मूल पढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य। से किं तं मूलपढमाणुओगे? एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाई, आउं, चवणाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ, पव्वयाओ, तवा .य भत्ता, केवलणाणुप्पाया य तित्थपवत्तणांणि य संघयणं, संठाणं; उच्चत्तं, आउं, .वण्णविभागो, सीसा, गणा, गणहरा य अजा . पवत्तणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं जिणमणपजव ओहिणाण सम्मत्तसुयणाणिणो य वाई अणुत्तरंगई यं जत्तिया सिद्धा, पाओवगया ये जे जहिं जत्तियाई भत्ताइं छेय़इत्ता अंतगडा मुणिवरुत्तमा तम रयोघ विप्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं च पत्ता, एए अण्णे य एवमाझ्या भावा मूलपढमाणुओगे कहिया आघविजंति पण्णविजंति परूविजंति से तं मूलपढमाणुओगे। . . !
कठिन शब्दार्थ - मूल पढमाणुओगे - मूल प्रथमानुयोग, तित्थपवत्तणाणि -
तीर्थप्रवर्तन।
___भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! अनुयोग किसे कहते हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि अनुकूल योग करना अनुयोग है अर्थात् सूत्र का उसके आशय के अनुसार ठीक अर्थ करना अनुयोग है। इसके दो भेद कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - मूल प्रथमानुयोग
और गण्डिकानुयोग। मूल प्रथमानुयोग किसे कहते हैं? मूल प्रथमानुयोग में तीर्थङ्कर भगवान् के पूर्वभव, देवलोक गमन, आयुष्य, च्यवन, जन्म, राज्याभिषेक, राज्यलक्ष्मी का उपभोग, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त यानी पारणे के समय आहारादि की प्राप्ति, केवल ज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ प्रवर्तन यानी साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना, संहनन, संस्थान, ऊंचाई, आयु, शरीर का वर्ण, शिष्य, गण, गणधर, आर्या-साध्वियाँ, प्रवर्तिनियाँ - साध्वी
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