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________________ बारह अंग सूत्र ३४१ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्ञप्ति। चन्द्र प्रज्ञप्ति में चन्द्रमा सम्बन्धी और सूर्य प्रज्ञप्ति में सूर्य सम्बन्धी विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमन, हानि, वृद्धि, पूर्ण ग्रहण, अर्द्धग्रहण, चतुर्थांश ग्रहण आदि का वर्णन किया गया है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में जम्बूद्वीप सम्बन्धी मेरु पर्वत कुलाचल (क्षेत्र का विभाग करने वाले पर्वत) महाह्रद क्षेत्र कुण्ड वेदिका नदी आदि का वर्णन किया गया है। द्वीप सागर प्रज्ञप्ति में असंख्यात द्वीप समुद्रों का स्वरूप, नंदीश्वर द्वीप आदि का विशिष्ट वर्णन किया गया है। व्याख्या प्रज्ञप्ति में भव्य अभव्य जीवों के भेद परिमाण, लक्षण, रूपी, अरूपी, जीव, अजीव आदि द्रव्यों की विस्तृत व्याख्या की गयी है। से किं तं सुत्ताइं? सुत्ताई अट्ठासीइं भवंतीति मक्खायाई, तंजहा - उन्जुगं, परिणयापरिणयं, बहुभंगियं, विप्पच्चइयं, [विणयचरियं (विजयचरियं)] अणंतरं, परंपरं, समाणं, संजूहं (मासाणे), संभिण्णं, अहाच्चयं (अहव्वायं) सोवत्थि (वत्तं) णंदावत्तं, बहुलं; पुट्ठापुटुं, वियावत्तं, एवंभूर्य, दुआवत्तं, वत्तमाणपयं, समभिरूढं, सव्वओभई, पणाम, [ पस्सासं (पणासं-पण्णासं)1 दुपडिग्गह, इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई छिण्णछेय णइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए, इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई अछिण्णछेय णइयाई, आजीवियसुत्तपरिवाडीए, इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई तिकणइयाई तेरासिय सुत्तपरिवाडीए, इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई चउक्कणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए, एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीइं सुत्ताई भवंतीतिमक्खायाई, से तं सुत्ताई।... - कठिन शब्दार्थ - ससमयसुत्त परिवाडीए - स्व समय की सूत्र परिपाटी के अनुसार, चउक्क णइयाई - नय चतुष्क-चार नयों के अंतर्गत। भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! सूत्र किसे कहते हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि सर्व द्रव्य, पर्याय और नय के अर्थों को बतलाने वाले को सूत्र कहते हैं। उसके ८८ भेद कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. ऋजुक, २. परिणतापरिणत, ३. बहुभंगिक, ४. विप्रत्ययिक या विनय चरित्र या विजयचरित्र, ५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. समान, ८. संजूह, ९. संभिन्न, १०. यथातथ्य या यथावाद, ११. सुवर्त या स्वस्तिक, १२. नन्दावर्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५. वियावर्त, १६. एवंभूत, १७. द्वयावर्त, १८. वर्तमान पद, १९. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. प्रणाम या प्रशास, २२. द्विप्रतिग्रह (दुष्प्रतिग्रह)। ये बाईस सूत्र स्वसमय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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