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________________ बारह अंग सूत्र ३३५ परिणाम कितना दुःखदायी होता है और जीव को कितने दुःख उठाने पड़ते हैं। इन बातों का साक्षात् चित्र इन कथाओं में खींचा गया है। कहा भी है - जीव हिंसा करतां थकां लागे मिष्ट अज्ञान । ज्ञानी इम जाने सही, विष मिलियो पकवान ॥ ३ ॥ काम भोग प्यारा लगे, फल किम्पाक समान । मीठी खाज खुजावतां, पीछे दुःख की खान ॥ ४ ॥ डाभ अणी जल बिंदुवो, सुख विषयन को चाव । भव सागर दुःख जल भर्यो, यह संसार स्वभाव ॥६॥ दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम सुखविपाक है। इसमें दस अध्ययन हैं। एक एक अध्ययन में एक एक व्यक्ति की कथा दी गई है। वे इस प्रकार हैं - १. सुबाहुकुमार २. भद्रनन्दीकुमार ३. सुजातकुमार ४. सुवासवकुमार ५. -जिनदासकुमार ६. धनपतिकुमार, ७. महाबलकुमार ८. भद्रनन्दीकुमार ९. महंच्चन्द्रकुमार १०. वरदत्तकुमार। .. इन व्यक्तियों ने पूर्वभव में सुपात्र को दान दिया था। जिसके फल स्वरूप इस भव में उत्कृष्ट ऋद्धि की प्राप्ति हुई और संसार परित्त (हलका) किया। ऐसी ऋद्धि का त्याग करके इन सभी ने संयम अङ्गीकार किया और देवलोक में गये। आगे मनुष्य और देवता के शुभ भव करते हुए महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष प्राप्त करेंगे। सुपात्र दान का ही यह माहात्म्य है, यह इन कथाओं से भली प्रकार ज्ञात होता है। इन सब में सुबाहुकुमार की कथा बहुत विस्तार के साथ दी गयी है। शेष नौ कथाओं के केवल नाम दिए गये हैं। वर्णन के लिए सुबाहुकुमार के अध्ययन की भलामण दी गयी है। पुण्य का फल कितना मधुर और सुख रूप होता है इसका परिचय इन कथाओं से मिलता है। प्रत्येक सुखाभिलाषी प्राणी के लिए इन कथाओं के अध्ययनों का स्वाध्याय करना परम आवश्यक है। ___ उपरोक्त दस में १. सुबाहुकुमार २. भद्रनन्दीकुमार ३. सुजातकुमार और १०. वरदत्तकुमार, ये चार व्यक्ति सुबाहुकुमार की तरह पन्द्रह भव करके मोक्ष में जायेंगे । शेष ६ अध्ययन के जीव उसी भव में मोक्ष चले गये हैं। मूल पाठ में ये शब्द दिये हैं - __ "तिकालमइविसुद्ध भत्तपाणाइं" टीकाकार ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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