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________________ बारह अंग सूत्र संग्गहणीओ से णं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा अट्ठ वग्गा, दस उद्देसण काला, दस समुद्देसण काला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता, संखेज्जा अक्खरा जाव एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जंति । से तं अंतगडदसाओ ॥ ८ ॥ अंतगडाणं कठिन शब्दार्थ अन्तकृत, सच्चसहियं सोयं सत्य और शौच सहित, सज्झायज्झाणेण उत्तमाणं दोन्हं पि लक्खणाई - स्वाध्याय और ध्यान इन दोनों के उत्तम लक्षण, चउव्विह कम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो - चार घाती कर्मों का क्षय कर जिस प्रकार केवल ज्ञान प्राप्त करना । भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन् ! अन्तकृत दशाङ्ग सूत्र में क्या भाव फरमाये गये हैं? भगवान् फरमाते हैं कि अन्तकृत दशाङ्ग सूत्र में अन्तकृत यानी जिन्होंने कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त किया उन मुनियों के नगर, उद्यान, चैत्य, वन, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि, भोगों का त्याग, प्रव्रज्या, श्रुत परिग्रह, उपधानादि तप, अनेक तरह की पडिमाएँ, क्षमा, मुक्ति-निर्लोभता आर्जव - सरलता, . मार्दव - मृदुता (नम्रता) सत्य, शौच और सतरह प्रकार का संयम, उत्तम ब्रह्मचर्य, अकिञ्चनता, तप, त्याग, समिति, गुप्ति और अप्रमत्तयोग तथा उत्तम स्वाध्याय और ध्यान के लक्षण इस सूत्र में बतलाये गये हैं । उत्तम संयम को प्राप्त करके परीषहों को जीत कर चार घाती कर्मों का क्षय कर जिस प्रकार केवलज्ञान प्राप्त किया उनका वर्णन है और मुनिवरों ने जितना दीक्षापर्याय जिस तरह से पालन किया, जिस जगह जितने भक्त का छेदन कर मुनियों ने अन्तिम समय में सब कर्मों का क्षण किया और समस्त कर्म रूपी रज से मुक्त होकर उत्तम मोक्ष सुख को प्राप्त हुए इत्यादि सब बातों का वर्णन तथा इसी प्रकार की दूसरी तों का वर्णन इस अन्तकृत दशाङ्ग सूत्र में किया गया है। अन्तकृत दशाङ्ग सूत्र में परित्ता वाचनाएं हैं, संख्याता अनुयोग द्वार हैं यावत् संख्याता संग्रहणियाँ हैं । अङ्गों की अपेक्षा यह आठवाँ अङ्ग सूत्र है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध है। दस अध्ययन हैं। आठ वर्ग हैं। दस उद्देशन काल हैं, दस समुद्देशन काल हैं। प्रत्येक पद की अपेक्षा संख्याता हजार पद हैं अर्थात् २३ लाख ४ हजार पद हैं। संख्याता अक्षर हैं यावत् चरणसत्तरि करणसत्तरि की प्ररूपणा की गई है। इस प्रकार के भाव अन्तकृत दशाङ्ग सूत्र में कहे गये हैं ॥ ८ ॥ विवेचन - प्रश्न - अन्तकृत (अंतगड ) दशा किसे कहते हैं ? उत्तर - अन्तकृतदशा शब्द का अर्थ टीकाकार श्री अभयदेव सूरि ने इस प्रकार किया है. ab Jain Education International For Personal & Private Use Only ३१७ - www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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