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________________ बारह अंग सूत्र ३१३ Comme r centrementerneteentertTTERTRENTTRACTerreranneer पोसहोववासपडिवजणयाओ सुयपरिग्गहा, तवोवहाणा, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोग-गमणाई, सुकुलपच्चायायाइं, पुणो बोहिलाभा, अंतकिरियाओ आघविजति । उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा, परिसा, वित्थर-धम्मसवणाणि बोहिलाभ अभिगम सम्मत्तविसुद्धया . थिरत्तं मूलगुण उत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमाभिग्गहणपालणा, उवसंग्गाहियासणा, णिरुवसग्गा य तवा य विचित्ता, सीलव्वय गुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासा अपच्छिम मारणंतिया य संलेहणा झोसणाहिं अप्पाणं जह य भावइत्ता बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेयइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसु जह अणुहवंति सुरवरविमाणवरपोंडरीएसु सुक्खाइं अणोवमाइं कमेण भुत्तूण उत्तमाई तओ आउक्खएणं चुया समाणा जह जिणमयम्मि बोहिं लभ्रूण य संजमुत्तमं तम रयोघविप्पमुक्का उति जह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं । एए अण्णे य एवमाइयत्था वित्थरण य। उवासयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा जाव संखेजाओ संग्गहणीओ। से णं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेजाइं पयसय सहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई, संखेजाइं अक्खराइं जाव एवं चरणकरण परूवणया आघविजंति से तं उवासगदसाओ.॥७॥ . कठिन शब्दार्थ - उवासयाणं - उपासक-श्रावकों की, वित्थरधम्मसवणाणि - विस्तारपूर्वक धर्म श्रवण, थिरत्तं - धर्म में स्थिरता, उवसग्गाहियासणां - उपसर्गाधिसहनताउपसर्गों को सहन करना, सुरवर विमाणवर पोंडरीएसु - उत्तम देवलोकों में, अणोवमाइं सुक्खाई अणुहवंति - अनुपम दिव्य सुखभोगों का अनुभव करते हैं, तम रयोघविप्पमुक्काकर्म रूपी रज से विमुक्त हो कर, अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं उवेंति - सब दुःखों का क्षय कर अक्षय मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं। भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि अहो भगवन्! उपासकदशा सूत्र में क्या भाव फरमाये गये हैं? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि हे शिष्य! उपासकदशा सूत्र में उपासकों के यानी श्रावकों के नगर, यक्ष आदि के मन्दिर, वनखण्ड - उपवन, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि विशेष का उपासकदशा सूत्र में वर्णन किया गया है। श्रावकों के शीलव्रत, विरमणव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास अङ्गीकार करना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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