SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ समंवायांग सूत्र नीचे रही हुई हवा जब कम्पित होती है तब लवण समुद्र का पानी क्षुभित हो जाता है। तब दो कोस तक उसकी वेल (जल की धारा) ऊंची बढ़ जाती है। सतरहवें तीर्थङ्कर श्री कुन्थुनाथ स्वामी २३७५० वर्ष कुमार अवस्था में रहे। २३७५० वर्ष माण्डलिक पद में रहे। २३७५० वर्ष चक्रवर्ती पद भोग कर दीक्षा ली। २३७५० वर्ष दीक्षा पर्याय का पालन कर सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त हुए। सम्पूर्ण आयुष्य ९५ हजार वर्ष का था। श्रमण भगवान् महावीर के ७ वें गणधर मौर्यपुत्र ६५ वर्ष गृहस्थ अवस्था में रहे। ३० वर्ष श्रमण पर्याय (१४ वर्ष छद्मस्थ और १६ वर्ष भवस्थ केवली) का पालन कर ९५ वर्ष की सम्पूर्ण आयुष्य भोग कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये। मण्डित पुत्र और मौर्य पुत्र सहोदर भाई नहीं थे, इस बात का खुलासा ६५ वें समवाय में कर दिया है। छयानवां समवाय. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंत चक्कवट्टिस्स छण्णउई छण्णउइं गामकोडीओ होत्था। वाउकुमाराणं छण्णउइं भवणावाससय सहस्सा पण्णत्ता। ववहारिए णं दंडे छण्णउई अंगुलाई अंगुलमाणेणं । एवं धणू, णालिया, जुगे, अक्खे, मुसले वि हु, अब्भिंतरओ आइमुहत्ते छण्णउइं अंगुलच्छाए पण्णत्ते ॥ ९६ ॥ . कठिन शब्दार्थ - छण्णउइं गामकोडीओ - ९६ करोड़ ग्राम, ववहारिए दंडे - व्यावहारिक दण्ड, धणू - धनुष, णालिया - नालिका, जुगे - युग-गाडी का धोंसरा, आइमुहुत्ते - आदि मुहूर्त-प्रथम मूहुर्त। भावार्थ - प्रत्येक चक्रवर्ती राजा के ९६ करोड ९६ करोड़ ग्राम होते हैं। वायुकुमार देवों के ९६ लाख भवनावास कहे गये हैं। व्यावहारिक दण्ड जिससे कोस आदि मापे जाते हैं, वह ९६ अंगुल प्रमाण होता है। इसी प्रकार धनुष, नालिका, युग-गाड़ी का धोसरा और मूसल, ये . सभी ९६-९६ अंगुल प्रमाण होते हैं। जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल में भ्रमण करता है उस समय प्रथम मुहुर्त ९६ अंगुल छाया का होता है अर्थात् जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल में घूमता है उस समय १८ मुहूर्त का दिन होता है, तब बारह अंगुल का एक तृण लेकर धूप में खड़ा करे जब उसकी छाया ९६ अंगुल पड़े तब जानना चाहिए कि अब एक मुहूर्त दिन आया है ॥ ९६ ॥ विवेचन - अङ्गल दो प्रकार का है - व्यावहारिक और अव्यावहारिक। जिससे हस्त, धनुष, गव्यूति आदि के नापने का व्यवहार किया जाता है, वह व्यावहारिक अङ्गुल कहा जाता है। अव्यावहारिक अङ्गल प्रत्येक मनुष्य के अङ्गल मान की अपेक्षा छोटा बड़ा भी होता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy